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इन्द्रियो होवा छतां परोक्ष वस्तुस्रो पोतानी मेले जाणी शकता नथी. परन्तु ज्ञानी भगवंतो ना सदुपदेश थीं अथवा शास्त्र श्रवणादिथी बीजा लोको परण परोक्ष वस्तुओ ओ जारणी शके छे.
मूलम्:
श्राचारशिक्षागमसाधनानि, रसायनं व्याकरणादिविद्याः । चरित्रवृत्तीपरदेशवार्त्ता, स्वादिन्द्रियाद्वेत्तिनकिन्तु चाऽन्यतः । गाथार्थ:- प्राचार, शिक्षण, मन्त्र नो श्राम्नाय सिद्धि नी विधि, रसायन, व्याकरण विगेरे विद्या, चरित्र, वर्तन ने परदेशनी वार्ता पोतानी इन्द्रियो होवा छतां स्वयं जाणता बथी, परन्तु बीजाना कथन थी जागी शके छे.
विवेचन: - बीजी केटलीक वस्तु पण पोतानी मेले दरेक माणसो जाणी शकता नथी, ते बतावतां जगावे छे के दरेक प्रकार नो व्यवहार, दरेक प्रकार नुं व्यवहारिक शिक्षण, दरेक मंत्र ना आम्नाय दरेक प्रकार नी सिद्धि नी विधियो, लोढा मांथी सोनुं विगेरे बने तेवा रसायनो, व्याकरण विगेरे विद्या, अनेक प्रकार नां चरित्रो, वर्तन, परदेशनी वार्ता, आबधी वस्तु बधा मनुष्यो पोतानी सर्व इन्द्रियो होवा छतां पोतानी मेले जागी शकता नथी, परन्तु बीजाना कथन थीज जाणी शके छे.