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( २५७ ) सर्वेषु सर्वाणि समानि खानि, तदा कथं भिन्नविभिन्नवक्रयः। परन्तुकश्चित्प्रतिभाविशेषो, येनोच्यतेतद्गतमूल्यानिश्चयः ।१५ गाथार्थ-माणिक्य विगेरे पदार्थो ना समहो मां इन्द्रियो नुं ज्ञान समान होय छे तो पण रत्न परीक्षा ना शास्त्र द्वारा रत्न ना परीक्षको थी तेप्रोन मूल्य अधिक अोछं थाय छे. तोशुं कहेवाय? सर्व रत्न परीक्षकोनी इन्द्रियो समान छे, तो अधिक अोछु मूल्य केम थाय ? परन्तु माणिक्य नुं अधिक अोछु मूल्य कोई नी प्रतिभा विशेष थी कहेवाय छे. विवेचन:- कोई माणिक्य आदि रत्नोनी परीक्षा रत्न परीक्षा ना शास्त्र थी रत्न-परीक्षको करे छे. त्यारे बधा रत्न--परीक्षको बधा रत्नो नी कीमत सरखी करता नथी. परन्तु एक माणिक्य नी कीमत अधिक तो बीजानी कीमत ओछी आंके छे. बधा रत्न परीक्षको नी इन्द्रियो समान छे. एटले बधानी इन्द्रियो नुं ज्ञान पण समान होवा छतां मूल्य अधिक के अोछु आंकवामां तमारा मत मुजब शुं कारण होय छे? ज्यारे अमारी मान्यता मुजब तो रत्नो नी कीमत वधु के अोछी प्रांकवामां ते रत्न परीक्षको नी प्रतिभा विशेष कारण भूत छे.
नूलमतथाहिफेनादिकजोटकेषु, प्रायो विमुह्यन्ति समेन्द्रियाणि । प्रमारणमेतेषु तदुत्थमत्तता, तेनेन्द्रियज्ञानमृतं न सर्वम् ।१६