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मूलम्श्रोत्राक्षिमुल्येन्द्रियरूपग्राह्य, परन्त्वतन्नामनि तस्य नाम्नि । अर्थे तथाऽन्याश्रितरूपवेषके,ज्ञानं न नेत्रश्रवसोस्तदर्थकृत् ।११ गाथार्थः -कान अने अांख थी ग्राह्य पदार्थ मां अने तेना जेवाज तेनाथी भिन्न पदार्थ मां अांख अने कान थी थतुं ज्ञान तेना अर्थ ने जणावनार थतुं नथी. विवेचन:-इन्द्रियो संबंधी ज्ञान सर्वथा अर्थ ने जणावनार होतुं नथी ते कहेवानी इच्छा वाला ग्रंथकार श्री फरमावे छे के कान अने आंख थी जाणी शकाय एवा कर्पूरादि मां अने तेना जेवाज वर्णवाला अने आकार वाला मीठं अने खांड़ मां कान अने अांख थी थतुं ज्ञान बराबर भेद पाड़ी शकतुं नथी. माटे इन्द्रियोथी थतुं ज्ञान बराबरज होय छे एम नथी. मूलम:यथा सिताभ्रादिसुगन्धिवस्तुषु, श्रोत्राक्षिनासारसनासमुत्थं । जानं यदप्यस्तितथापिकेषुनि-तेषुप्रमाणंरसनावबोधनम् ।१२ गाथार्थ- जेम साकर, कर्पूरादि सुगंधवाली वस्तुप्रो मां कान, प्रांख, नाक अने जीभ थी उत्पन्न थयेलुं ज्ञान होय छे तो पण केटलाक पदार्थो मां जीभ न ज्ञान प्रमाण रूप थाय छे.