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पोताना शत्रु ने नाश करनारा पोताना शत्रु नी उत्पत्ति थतांज पोते नाश थनारा अने पोताना थी उत्पन्न थयेल गुण प्रधान एवा प्र शब्दो प्रास्तिक ने नास्तिक बन्न ने कहेवा योग्य छे.
विवेचन :- प्रा शब्दो बधी इन्द्रियो थी ग्राह्य नथी, ते बतावतां कहे छे के ग्रा शब्दो जीभ नी जेम शब्द वाला नथी; सोना नी जेम देखीशकाता नथी, पुष्पादि नी सुगंध जेम सुंघी
काय तेम नथी, साकर जेम स्वाद करी शकाय तेम नथी, पवन नी जेम स्पर्श करी शकाय तेम नथी. फक्त एक कानथीज ग्रहण करी शकाय तेवा, छे. तालू, होठ, जीभ विगेरे स्थानो थी बोली शकाय छे. एमां केटलाक शब्दो फक्त क्रोध, मान आदि नी जेम पोत पोतानी चेष्टा आदि थी जारणी शकाय छे. केटलाक शब्दो क्षमा आदि नी जेम पोताना अभ्यास थी प्राप्त थयेल फल थी अनुमान करी शकाय छे. केटलाक शब्दो विवेक आदि नी जेम पोताना नामना यथार्थ कथन ने धारण करनारा छे. केटलाक शब्दो आनंद विगेरे नी जेम पोताना शत्रु ना शोक विगेरे ने नाश करनारा छे. केटलाक शब्दो दुःख विगेरे नी जेम पोताना शत्रु ने सुख उत्पन्न थतांज पोतानो नाश करनारा छे. केटलाक शब्दो चार आश्रम, चार जाति विगेरे नी जेम गुण प्रधान छे. ए रीते आस्तिक ने नास्तिक बन्न े ने ए मान्य छे.