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प्रसाददैन्यव्यसनान्यसूया--शोभाप्रभावप्रभुताभियोगाः । नियोगयोगाचरणाकुलानि,भावाभिधा प्रत्यययुक्तशब्दाः ।२० गाथार्थः -प्रानन्द, शोक, आचार, विद्या, आज्ञा, कला,. ज्ञान, मन नी पानंद दायिक, प्रवृत्ति, न्याय, अनोति,चोरी, जार कर्म, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, अने शूद्र ए चार वर्णो; एटले जातिओ, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ अने संन्यास ए चार आश्रमो; आचरण, आदर, पवन सेवा, मैत्री भाव, यश, भाग्य, शक्ति, महिमा, शब्द तथा अर्थ; उदय, भंग, भक्ति, वैर भाव, अज्ञान, अहंकार, बल, शिक्षण, परोपकार, गणो रूप विगेरे, क्रीडा, क्षमा, पालोचन (जोवं ते), संकोच, गमनादिक, दर्शनादि, राग, खुश थर्बु ते, दुःख, सुख, विवेक, ज्ञान, प्रिय, स्नेह, पूर्व आदि दिशाओ, देश, गाम, नगर. यौवन, वृद्धावस्था, सिद्धि, आस्तिक, नास्तिक, कषाय, असत्य, शब्दादि विषय, विमुख, चातुर्य, गांभीर्य,खेद, कपट, कलंक, श्रम, अपशब्द, लज्जा, संग्राम, समाधि, बुद्धि, दीक्षा, परीक्षा, दमन, संयम, माहात्म्य, अध्यात्म, कुशील, शील, भूख, तरस, मूल्य, मुहूर्त, पर्व, सुकाल, दुष्काल,. भयंकर, आरोग्य, निर्धनता, राज्य, अधिक पणुं, विश्वास, प्रसंग, हानि, स्मृति, उन्नति, आसक्ति, प्रसन्नता, दीनता, व्यसन, ईर्ष्या (गुण ने विर्षे दोषारोपण) शोभा, प्रभाव,