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( २४० ) मूलम्:यथा पुनः स्वस्थमनाः स्वबन्धन,जानाति नैवं मधुमत्त एषः । सन्त्येषुतान्येवकिलेन्द्रियारिण,कथंविषर्यासइयानभिष्यात्? ७ गाथार्थ.-वली जेम स्वस्थ मन वालो पोताना बंधुओ ने जाणे छे तेम मदिरा पीनार आ जाणतो नथी. ऊपर नां दृष्टांतो मां तेज इन्द्रियो विपरीत केम जाणे छे ? ..... विवेचन:-वली जेम स्वस्थ मन वालो मनुष्य पोताना बंधुनो ने जाणे छे तेम मदिरा पीनार माणस पोताना बंधुनो ने जाणतो नथी. पुरुष ने स्त्री तरीके जाणनार, कमला ना रोगवालो सफेद शंख ने घणा वर्ण वाला शंख तरीके जाणनार, पोताना संबंधियो ने मदिरा पीधा बाद विपरीत तरीके जाणनार, या बधुं सत्य करतां विपरीत जाणे छे. तो आ बधी बाबतो मां इन्द्रियो नुं ज्ञानज प्रमाण भूत होय तो भ्रम केम थाय छे ? त्यारे नास्तिको कहे छे के इन्द्रियो विपरीत जाणती नथी, परन्तु रात्रि, रोग अने मदिरा ना कारण थी विपरीत जणाय छे. हवे नास्तिको ने पूछवारों के रात्रि विगेरे मां पदार्थ ना आकार, वर्ण, गंध, रस अने स्पर्श विगेरे शुन्य छे ? परन्तु हाथ मां रहेल आमला नी जेम ते कहे पण अशक्य छे. माटे नास्तिको नी तेज इन्द्रियो नी प्रत्यक्षता अप्रमाणिक केम छे ते बतावे छे..