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. ( २३७ ) नथी एटलेज तेश्रो पुण्य, पाप, नरक, स्वर्ग, मोक्ष अने आत्मादि मानता नथी. मूलम् - पृच्छाऽस्तितःसार्धमसौमुनिनां,चेन्नास्तिकरिन्द्रियगोचरःश्रितः। सद्वस्तुदृश्यंयदिहिवस्तुकिं,यन्नेन्द्रियारणांविषयःसमेषाम् ।३ गाथार्थ:-मुनियो नास्तिको ने पूछे छे के जो इन्द्रियो ने प्रत्यक्ष एवो तमारो मत होय तो जे देखाय छे तेज सद्वस्तु छे. ते शुं एवी वस्तु के के जे बधी इन्द्रियो ने गोचर.नथी? विवेचन-नास्तिको पुण्य, पाप आदि मानता नथी एटले
आस्तिको नास्तिको ने या प्रश्न पूछे के इन्द्रियो ने प्रत्यक्ष एवो तमारो मत होय तो तेनो अर्थ एज थयो के जे प्रत्यक्ष देखाय छे तेज वस्तु विद्यमान छे तो एवी कई वस्तु छे के जे बधी इन्द्रियो ने विषय भूत नथी ?. ... मूलम्ःरामादिकेवस्तुनिसर्वश्रोतसां,किंगोचरोनेतियदाहनास्तिकः । रात्रावतद्वस्तुनिशब्दरूप-समेऽपितद्वस्तुभ्रमो नकिस्यात्।४ गाथार्थ- रामादि वस्तुप्रो सर्व इन्द्रियो ने गोचर नथी ? एम नास्तिको कहे छे. तो ते विचारणीय छे. जे रात्रे रामादि थी भिन्न पदार्थों के जे शब्द अने रूप मां सरीखा होय छे तेमा भ्रम नथी थतां ? अर्थात् थाय छे..