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तथा तेवा प्रकार नी रोकी शकाय नहीं तेवी तेनी शक्ति नी प्रेरणा थी कर्मों प्रगट थई पोताना कर्ता प्रात्मा ने बलात्कारे दुःख पमाड़े छे.
मूलम् - यथोष्णकालादिऋतौ समेते, कश्चिञ्जनः शीतलवस्तुसेवी। मृष्टादिकाम्लादिकरम्भभोजी,स्यात्तस्यतद्योगसमुत्थवातः ॥१७ वर्षाऋतुप्राप्यपुरुप्रकुप्यति, प्रायो वपुःस्थः स समीर उग्र। लब्ध्वाचकालंशरदास्यमेष, प्रायेणसंशाम्यतिपित्तभावात् ।१८ एवं हि दातादिकवस्तुनस्तू-त्पत्तिस्थिति प्रान्त दशात्रयेऽपि । प्रास्माश्रितस्याऽस्यनकश्चिदन्यः,विनवकालादिकमत्र हेतुः ।१६ गाथार्थ-कोई मनुष्य ऊनालादि मां ठंडो वस्तु, मीठी वस्तु अने खाटी वस्तु खाय तेना योगे उत्पन्न थयेल वायु वर्षाकाल मां प्रकोपायमान थाय छे, ते वायु पित्त ना कारण थी शरद ऋतु मां शमी जाय छे. एवी रीते पवन नी जेम आत्मा ने आश्रित कर्मो नी उत्पत्ति, स्थिति अने नाश ए त्रण दशामां कालादि विना कोई हेतु नथी. विवेचन:-कोई नी पण प्रेरणा विना कर्मो कालादि ना योगेकेवी रीते सुख-दुःख आपे छे-ते दृष्टांत द्वारा बतावे छे के जेम कोई मनुष्ये ऊनाला मां ठंडा पदार्थों, मिठाई विगेरे मीठा पदार्थों अने दही विगेरे खाटा पदार्थों खाधा होय अने