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( १७८ ) गाथार्थ:-हे चतुर पुरुषो ! जो निगोद ना जीवालोक मां संपूर्ण व्यापी ने रहेला होय तो कया कारण थी दृष्टि पथ मां आवता नथी ? अने परस्पर भीड़ाई ने रहेला होवा छतां केम बाधा पामता नथी ? विवेचन:- जगत मां जे वस्तुप्रो रहेली छे ते वस्तुओ
आपणी दृष्टि मां आवे छे तो जैन सिद्धान्त मुजब निगोद ना जीवो चौद राज लोक मां ठांसी-ठांसी ने भरेला होय तो ते प्रो आपणा दृष्टि-पथ मां केम आवता नथी ? अने परस्पर भीड़ाई ने रहेला होवा छतां तेश्रो बाधा केम न पामे ?
मूलम् - सत्यं निगोदा अतिसूक्ष्मनाम - कर्मोदयात्सूक्षमतराभवन्ति । एकां तनुतेऽधिगताअनन्ता-स्तथाऽप्यदृश्याननुचर्मदृग्भि ॥१५॥ गाथार्थः-तमारू केहबुं सत्य छे परन्तु निगोद ना जीवो अति सूक्ष्म नाम कर्म ना उदय थी अति सूक्ष्म होय छे. एक शरीर मां अनंता रहेला छे अने चर्म चक्षुथी अदृश्य छे. विवेचन:-जैन सिद्धांत मां ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र अने अंतराय एम कर्म नी मूल प्रवृत्ति पाठ छे, तथा उत्तर प्रकृति १५८ छे ते