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________________ ( १५६) कर्ता नो उपचार करी तेने सुख-कर्ता तरीके अने उपकारी तरीके पण माने छे. मूलम्:एवं ह्यनेके खलु सन्ति संतो, दृष्टांतसङ्काः सुधिया सुमुह्याः तथासतीशोमहिमापिविश्रु तो,भक्तुश्च सर्गप्रतिसर्गकर्तृता ६६ गाथार्थ :- ए प्रमाणे खरेखर अनेक दृष्टांत समूहो छे ते बुद्धिमान पुरुषे विचारवां तेमज ईश्वर प्रसिद्ध छे, तेनो महिमा प्रसिद्ध छे अने ईश्वर ना भक्त - सृष्टि सर्जन अने संहारक पणुं पण प्रसिद्ध छे. विवेचन:-हवे उपसंहार करता शास्त्रकार महाराजा फरमावे छे के अनेक दृष्टांतो संसार मां तेमज शास्त्र मां छे तेनो बुद्धिमान पुरुषोए विचार करवो जोइये जेथी ख्याल मां पावशे के ईश्वर जगत-कर्ता नथी अने जगत नो नाश करनार पण नथी. परन्तु ईश्वर ए शुद्ध तत्त्व रूप छे, एम प्रसिद्ध छे. ईश्वर नो महिमा पण प्रसिद्ध छे तथा ईश्वर ना भक्त नुं सृष्टि-सर्जन अने संहारक पणुं पण प्रसिद्ध छे.
SR No.022148
Book TitleJain Tattva Sar Sangraha Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherRanjanvijayji Jain Pustakalay
Publication Year1979
Total Pages402
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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