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( १४५ ) छे, ते बस्तु तेने अवसरे मलशे के केम ? एवी वस्तु प्राप्ति ना भय थी वस्तु ने संग्रही राखे छे. तेम ईश्वर पण अवसरे जीवो नी प्राप्ति पोताने थशे के केम ? एवा भय थी जीवो ने संग्रही राखे छे. तो तेम संग्रह करनार मनुष्य भय ना कारणे संग्रह करनार होवाथी ते भयभीत गणाय छे. तेम ईश्वर पण 'मने अवसरे जीवो मलशे के केम' एम भय ना कारणे भयभीत गणाशे. मूलम्ःअशक्तिरप्यस्य निवेदिता य-नो भिन्न भिन्नार्थक मेलवीर्यः । कर्तुस्त्वचिन्त्याकिलशक्तिरस्ति,तत्किसलोभीतिनिगद्यतेहो५१ गाथार्थ-कहेल पक्ष मां का नी अशक्ति जणावी छे, कारण के जूदा-जूदा जीव पदार्थो मेलववा नी शक्ति कर्ता मां नथी. जो वादो कहे के कर्ता नी शक्ति प्राचिन्त्य छे तो ते कर्त्ता लोभी कहेवाय. विवेचन:- ईश्वर प्रथम जीवो ने अमुक स्थले राखी मके छे एटले संग्रही राखे छे अने पछी अवसरे प्रगट करे छे. एम जो तमो मानता हो तो कदाच ईश्वर ने ते वस्तु पाछी मेलववानो जो भय न होय तो ते जीवो अने पदार्थो पाछा मेलववा माटे नी ईश्वर नी शक्ति नथी. त्यारे वादी एम कहे छे के जीवो ने अने पदार्थो ने पाछा मेलववानी ईश्वर