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सृष्टि ना संहार काल मां सक्रियता अने ते सिवाय ना काल मां निष्क्रियता थाय, एटले ब्रह्म निष्क्रिय होवा छतां ब्रह्म मां सक्रियता आववाथी दोष लागशे. तमारी मान्यता मजब बधा जीवो ने ब्रह्माए बनावेल होवाथी तेमना मां सुख-दुःख जोवाथी ब्रह्माए राग थी जीवो ने सुखी बनाव्या अने द्वेष थी जीवो ने दुःखी बनाव्या. तो ब्रह्मा मां राग अने दोष छ एम लागे. जो ब्रह्म निरंजन होवा छतां राग अने द्वेष रूप दूषण ब्रह्मा ने लागशे. जो तमो एवो तर्क करशो के जीवो ना सुख-दुःख ना कारण मां जेवा प्रकार नी क्रिया तेवा प्रकार नां तेमने सुख-दुःख. तो सुख-दुःख ना कारण रूप पोतानां पुण्य-पाप बन्यां तो ब्रह्मा रूप कर्त्ता नु पराक्रम शु? अर्थात् कर्त्ता तरीके ब्रह्म ने मानवा करतां जीवे करेलां पुण्य अने पापज सुख-दुःख मां कारण रूप मानवां जेथी ब्रह्म ने दोषज न लागे. मूलम्हेब्रह्मवादिन्! यदिजन्तवोऽमी, ब्रह्मांशकास्तहिसमेसमास्युः । तदंशसाम्याबहुभेदभिन्ना-श्वेतहिकश्चिन्ननुतत्करोऽन्यः ॥३४॥ गाथार्थ- हे ब्रह्मवादी ! जो आ जीवो ब्रह्म ना अंशो होय तो तेना अंशो सरखा होवाथी बधा जीवो सरखा होवा जोइये, परन्तु बधा जीवो अनेक प्रकार ना बहु भेद वाला