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ॐ अर्ह
श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः
श्री जित-हीर - बुद्धि- तिलक गुरुवरेभ्यो नमः
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महोपाध्याय श्री सूरचन्द्रगरिण विरचित
श्री जैन तत्त्व सार संग्रह सटीक (गुर्जर भाषानुवाद)
॥ प्रथम अधिकारः ॥ मंगल अने वस्तु नो निर्देश
मूलम् -
संशुद्ध सिद्धान्तमधीश मिद्धं, श्री वर्धमान प्रणिपत्य सत्यम् । कर्मात्मपृच्छं तरदान पूर्व किञ्चिद्विचारं स्वविदे समूहे ।। गाथार्थ:
निर्दोष सिद्धान्तवाला, परम ऐश्वर्यवाला, अतिशयो वड़े देदिप्यमान अने सत्य स्वरूप एवा श्री वर्धमान स्वामी ने प्रणाम करीने पोताना ज्ञान माटे कर्म अने ग्रात्मा सम्बन्धी प्रश्नोना उत्तर देवा पूर्वक कक विचारू छु । विवेचन:
कोई परण आगम, ग्रंथ, अथवा चरित्रनो प्रारंभ करतां पहलां मंगल, अभिधेय, सम्बन्ध, अने प्रयोजन एम चार वस्तुप्रो अवश्य बताववी जोइये, एवी जैन शासन नी प्रणालिका छे ते मुजब अहियां पररंग चार वस्तुनो बतावी छे ।