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अने उत्तर मीमांसक सम्बन्धी, हिन्दू नां शास्त्रो ने यवनो नां शास्त्रो ने तेमज त्ररण लोकनां सर्व शास्त्रो ने जाणतो
,
छतो असंख्यात वर्ष काल चाल्यो जाय छतां शास्त्र भरणनार नुळे हृदय शास्त्र ना अक्षरो वड़े भरातू नथी ने शास्त्र ना अक्षरो नो नाश थतो नथी. तेम संसार मांथी सतत भव्य आत्मा मुक्ति मां जवा छतां संसार भव्य आत्माथी खाली थई जतो नथी अने मुक्ति नुं स्थान सिद्ध श्रात्मानोथी भराई जतु नथी.
मूलम् - दृष्टान्तदान्तिक भावनेयं,
विज्ञः स्वयं चेतसि चिन्तनीया ।
एवं ह्यनेकेऽभिनिषन्ति भूयो,
दृष्टान्त संघा अपरेऽपि योज्याः ॥ १२ ॥ गाथार्थ :- विद्वान् पुरुषोए पूर्वे कल दृष्टांत ने दाष्टन्तिक संबंधी विचारणा मनमां पोतानी मेले विचारवी, अने atri अनेक दृष्टांतो आ विषयमा घटाववां. विवेचन :- प्रा विषय मां पूर्वे बतावेल दृष्टांत अने दान्तिक सम्बन्धी घटना पोतानी मेले मनमां घटाववी जोइये. कारण के आ बधा दृष्टांतो विद्वान् पुरुषोए बत. वेल छे. जेथी विशेष श्रद्धा उत्पन्न थाय छे तेमज आ