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गाथार्थ-जीव नो कर्मग्रहण करवानो स्वभाव छे ते मूलथी उत्पन्न थयेल अने स्वाभाविक छे. एवो कर्मग्रहण नो स्वभाव छोड़ीजीव केवीरीते सिद्धथाय छे ते जणावो. विवेचनः-तैजस अने कर्मण नामनु शरीर जीव ने अनादिकाल नु लागेलु छे तेथीजीव नो कर्म ग्रहण नो स्वभाव पण अनादि काल नो होवाथी ते स्वभाव स्वा भाविक बनीगयोछे. तोप्रावो मूलगत अने स्वभाविकस्वभाव छोड़ी जीव सिद्ध केमबनैएवो प्रश्नथाय ते स्वाभाविक छे तेथी या प्रश्न पूछवामा आवेल छे हवे आगली गाथा मा तेनो उत्तर देवाय छे. नूलम्कर्मात्मनोर्यद्यपिमौलसङ्ग-स्तथापिसामग्रयतथोपलम्भात् । कर्मग्रहप्रोज्मयशिवसमेतः सिद्धोंभवेदत्रनिदर्शनं यत् ॥२॥ गाथार्थ-जोके आत्मा अने कर्म नो सबंध अनादिकाल नो छ परन्तु तेवाप्रकार नी सामग्रीना योगे जीव कर्म ग्रहण नो स्वभाव छोड़ी मुक्तिमां जाय छे. पा विषय मां दृष्टांत कहेवाशे. विवेचन- प्रो संसारमा संबंधो पण अनेक प्रकारना जोवामां आवे छे. जेमके केटलाक संबंधो कोई बे वस्तु ना संबंधो थाय छे एटले नवो संबंध थाय छे अने पछी पाछो