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________________ (५४) शक्ति वगरना रंको तेनी सरसाइ करवा मागे तो तेमां पोतानोज नाश थाय छे. अत्र मुख्य उपदेश एछे के पोतानी जे स्थिति होय तेमां संतोष मानवो. दुनियामां अनेक जंगोए सुख देखाय छे तेथी ते तरफ पोते ललचाइ जवुं नहि अने धर्म सामग्री प्राप्त थया पछी रागद्वेष करी ते निष्फळ करवी नहि. ॥ दृष्टांत नवमुं - बे वाणियानुं ॥ कोइ गाममां बे वाणिया रहेता हता. तेओ अनेक काम करता हता परंतु नशीबना मोळा (नवळा) होवाथी पासे पैसो एकठो थतो न होतो. तेओए पैसा पेदा करवा सारु कंइ कंइ प्रयत्नो कर्या, पण ज्यारे कोइ पण उपाये पैसा मळ्या नहि त्यारे नगरनी बहार एक यक्षनुं मंदिर हतुं त्यां जइ तेनी सेवा करवा मांडी. एक दिवस यक्ष प्रसन्न थयो त्यारे तेओए तेनी पासे द्रव्य माग्यं. यक्षेक, " हे वत्सो ! तमारे पैसानी बहुज इच्छा छे तो जाओ, हुं तमारापर प्रसन्न थयो छु. काळी चउदशनी रात्रिये तमारे बन्नेए एकेक गाडुं तैयार करी राखवुं हुं तमने बन्नेने गाडी सहित ते रात्रिए रत्नद्वीपे लइ जईश त्या अनेक रत्नो रस्तामां पड्यां होय छे. तमने त्यां बे पहोर सुधी राखवामां आवशे. तमाराथी जेटला रत्नो लेवाय तेटलां लड् लेजो. बे पहोर पछी तमने गांडा सहित उपाडीने पाछा अहीं लावीश. " वाणीआ तो आ सांभळी राजी राजी थह गया अने उक्त रात्रिए बहु सारा बे गाडां तैयार करी लाव्या. तेमां वळी वधारे रत्नो लइने गोठवी शकाय एवी युक्ति (संच विगेरेथी) पण करी राखी. निमेल वखते यक्ष बन्ने गाडांओ साथे ते वाणीआने उपाडी रत्नद्वीपे मूक्या. जे जगोए तेओने मूक्या त्यां बहु सुंदर रीते पाथरेली सुगंधीथी बहेकी जती बे सुंदर शय्या हती. एक वाणियाए विचार कर्यो के एक कलाक सुइ लउं एम विचारी सुतो अने उंघ आवी गई. उंघमां बे पहोर चाल्या गया. बीजा वाणियाए तो बीजुं काम मात्र तजी दइने रत्नोना गांसडा बांधवा मांड्या. तेणे बे पहोर सुधी बीजो धंघो कर्यो नहि. बे पहोर पूरा थया के देवे तो गाडां उपाड्यां अने बन्नेने तेना नगरनी समीप मूकी दीघा विचक्षण वाणियाए तो लावेलां रत्नोवडे महेल बंधाव्या अने सुखी थइ गयो अने पेलो प्रमादी तो दुःखीज रह्यो अने विचक्षणनी संपत्ति जोइ पस्तावा लाग्यो, अने तेनो द्वेष करवा लाग्यो. ( उपनय ) शुद्ध देव गुरु धर्मनी जोगवाई ए रत्नद्वीप छे, एने
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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