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मोहोरोने एक वांसळीमां भरी ते वांसळी केड साये बांधी लीधी अने खरच . सारूं एक महोरनी काकिणी लीधी. (एक रूपीवानी एशी काकिणी यायः एक काकिणी सवा दोकडानी थाय) हवे सार्थ चाल्यो. रस्ते मोटी अटवीमां एक झाड तळे भातुं खावा बेठा त्यारे ते माणस एक काकिणी त्यां भूली गयो. बपोरे मुकाम उपड्यो. सांजना काकिणी सांभरी सवारे विचार थयो के काकिणी सारूं सोना महोर वटाववी पडशे एतो खोटुं माटे वासळीने तेज झाड तळे दाटीने पोते काकिणी लेवा गयो. जे झाड नीचे भातुं खाधुं हतुं त्या जइने जोयुं तो काकिणी मळे नहिं. पाछो आवीने जुए छे तो चोर लोको. खाडो खोदी बांसळी उपडी गया छ, आवीरीते बन्नेथी भ्रष्ट थयो अने बहु शोकार्त थयो. घेर गयो त्यां खावाना पण वांधा पडया अने सगा वहालाओए हसी काव्यो. (उपनय) जेम ते गरीब गाणस पासे प्रथम काइ पैसा नहोता; पण प्यारे महा प्रयासे मळ्या त्यारे मात्र सवा दोकडानी एक काकिणीना लोभथी सर्व गुमाव्या अने बन्नेथी भ्रष्ट थई दरिद्रीने दरिद्री रहयो. तेवीज रीते तुं पण याद . राखजेके अंतराय कर्मना उदयथी संसारीपणामां कामभोगनी प्राप्ति न थती होय तेथी तुं देशथी अगर सर्वथी चारित्र ले अने त्यार पछी कामभोगनी इच्छा करे तो तेने परिणामे कामभोग पण न मळे अने चारित्रथी पण भ्रष्ट थाय; माटे एवं करीश नहि. उभय भ्रष्ट थनार घणा मनुष्यो होय छे; तेमज थोडा लोभनी खातर आखो भव झेर जेबो कर नारा पण घणा मनुष्यो मळी आवे छे. एवीज रीते अमुक व्रत नियम लइ पाछो तजेला पदार्थोना सेवननी इच्छा करे छे, परंतु दुनियानो क्रम एवो छे के तजेली वस्तु फरीने मळती नथी अने तेनी इच्छा करनारनुं तजवानुं पुण्य नाश पामे छे. आवी रीते ते बन्नेथी भ्रष्ट थाय छे. तजवाथी थतो मननो संतोष अने न तजनारने थतो स्थळ कल्पित संतोष ए बन्ने तेने मळता नथी. बीजी रीते आ दृष्टांत मनुष्यजन्म उपर बराबर घटी शके तेवं छे. विषय काकिणी तुल्य समजवा अने हजार महोर ते मनुष्यभव समजवो. जरा विचार करवाथी काकिणी सारं मनुष्य जन्म हारनारनी मूर्खता समजी शकाशे.
॥ दृष्टांत त्रीजु-जळ बिंदुनुं ॥ एक वखत एक मनुष्य बहुं तरस्यो थयो हतो. तेणे उभा उभा देवनी