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अर्थ:-जिनेश्वर भगवंत तरफ अभाक्ति (आशातना) साधुओनी "अवगणना, व्यापारादिमां अनुचित प्रवृति, अधर्मीनो संग, मायाप विगेरेनी सेवा करवामां ऊपेक्षां (बेदरकारी) अने परवंचन " (बीजान ठगवू ते) आ सर्व प्राणीने माटे चोतरफथी आपदाओ उत्पन्न करे छे. ॥४॥ ___ भावार्थ:-जिनेश्वर प्रत्ये अभक्ति- राग, द्वेष रहित कर्मने हणनार द्वादश गुणालंकृत श्री जिनेश्वर महाराज तरफ अभाक्ति, तेओनां वचन तरफ बेदरकारी, तेनी अरुचि तेओना साकार स्वरूप- विगोपण, तेनो बीजी कोई पण रीते अनादर तेओ तरफ अप्रीति अने अविनय.
२ गुरुनी अवज्ञा- गुरुमहाराज शुद्ध मार्ग बतावनार छे.. तेओनो विनय राखवो, तेओ तरफ गेरवर्तणुक चलाववी नहि, तेओ साथे कलहमा उतरवू नहि अने तेओ तरफ प्रगट तिरस्कार बताववो नहि, एटलुंज नहि पण तेओनु वचन मान्य करवू. एथी उलटुं करनार गुरुद्रोही छे. आत्म अवनति करनारो छ, पतितछे.
३ कर्ममां अनौचित्य-पोताने योग्य व्यापारमा अनुचित आचरण करवू ते. आना चे प्रकारना भाव छे एकतो व्यापारमा अनीति अशुद्ध व्यवहार, अप्रमाणिक आचार अने भाषण बाजु पोतानी फरजयी विरुद्ध वर्तन परदारा गमन, सट्टो द्युत विगेरे दुर्गुणोनो एमां समावेश थाय छे. ___४. अधर्मसंगः- धर्म नामने योग्य धर्मनी परीक्षा करी तेने अनुस ए धर्मसंग. एथी उलटी रीते परीक्षा योग्य रीते न करतां, स्वधर्ममां मरण सारं ए सूत्रने अनुसर ए अधर्मसंग. अथवां नियम वगरना मुर्ख माणसोनी सोबत करवी ए पण अधर्म संगज छे. सोबतथी बहु तात्कालिक असर थाय छे अने तेथी सत्संगनी जरूरीआत वारंवार बतावेली छे. दुर्जननां संग करवाथी अनेक अगवडो आवे छे.
५पिता विगेरे तरफ बेदरकारी:- पुत्र धर्मनो आयी नाश थाय छे, महा मुष्केली ऊभी थाय छे. अने घणुं करीने तुरतमां दुःख परंपरा प्राप्त थाय छे..
६ परवंचन- स्पष्ट छ कायदामां पण ए फौजदारी गुन्होछ. (cheating)