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________________ (४१) अर्थ:- दाक्षिण्यता, लज्जालुपणुं, गुरु अने देवनी पुजा, माबाप, विगेरे वडील तरफ भक्ति, सारा कार्यो करवानी अभिलाषा परो. पकार अने व्यवहार शुद्धि मनुष्यने आ भवमा अने परभवमां संपत्ति आपे छ.॥३॥ भावार्थ-दाक्षिण्यता एटले मननी मोटाहथी सामा माणसने पण अनुकूळ थइ जवानी मननी सरळता. दाक्षिण्यतामा स्वतंत्रतानो नाश थतो नथी, पण तेना करतां महान् सद्गुण जे सरळतानो छे ते प्राप्त थाय छे, श्रावकना गुणोमा 'दाक्षिण्यता' ते एक गुण कहेवामां आव्यो छ अने तेनी व्याख्या करतां तेनुं शुभ मार्गे व्यवस्थापन स्पष्ट बताव्युं छे. __ २ लज्जालुपणुं- आ गुणथी नकामी स्वतंत्रतानो नाश थाय छे अने विनय सचवायछ. खास करीने स्त्रीओमां आ गुण भूषणरूप गणाय छे. अने पाप कार्यमा प्रतिबंध करनार तरीके स्त्री पुरुष बन्नेने अतिशय लाभ आपनार छे. __ ३ गुरु देवपुजा:- द्रव्य अने भावथी अवलंबननी जरूरीआत सर्व जीवने बहु रहे छ. गुरुना वचन प्रमाणे वर्तन करवू ए पण पूजा छे अने भावना मांट हृदय समक्ष अने चक्षु समक्ष भावमय अने स्थूळ साकार वृत्तिए निराकार पद पामवा ते गुण प्राप्त करेला भगवाननुं ध्यान करवू ए बहु उपयोगी छ, खास जरूरनुं छे, महालाभ करना छे. ४ पित्रादि भक्ति-- पितानी धर्मकार्यमा अगवड न आवे ते ध्यानमां राखी अनन्य चित्त भक्ति करवी. तेओने संतोष आपवो ए दरेक सुपुत्रनी फरज छ. आदि शब्दथी दरेक वडील समजवा. ५ सुकृताभिलाष-- सारा कायों करवां, वारंवार करवा अने तेनु चितवन कर्या करवं. कार्य क्रम ए छे के प्रथम विचार अने पछी आचार. शुभ संस्कार जगाडवा माटे सारा विचारोनी जरूर छे. सारा कृत्योना विचार पछी सारा कृत्यो थाय छे. ए संशय वगरनी वात छ. संजोग प्रतिकुळ होय तो कदाच अमलमां तुरत न मुकी शकाय तो पण विचार कयौँ होय तो अनुकूळताए शुभ कार्यों थई शके छे. विचारथी संस्कार बंधाय : के अने काइ नहि तो छेवटे आवता भवमां पण ते संस्कार जागृत थाय छे, तेटला माटे मोळी ( उत्साह वगरनो ) विचार कदी करवो नहि-शुभ
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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