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(२४) अइनेहो नवहिज्जइ,रुसिज्जइ नयपिये विपइदियह वद्धारज्जइ न कली, जलंजली दिज्जइ दुहाणं १४
अर्थः- अति राग न धरवो, प्रिय मनुष्यपर पण निरंतर रोष न करवो, कलेश-कजिओ न वधारवोः-आ रीते दुःखोने जलांजली देवी. ॥ १४॥
भावार्थ:-अति राग न धरवो-आ जगतमां उत्पन्न थता सर्व प्रकारना दुःख कारण राग शिवाय अन्य कांई विचारवंत पुरुषनी दृष्टिए जणातुं नथी. मनुष्यने कर्मनो बंध करावनार रागज छे, एम जे शास्त्रो प्रतिपादन करे छे ते सर्वथा सत्य छे. जेने आपणे मारुं मानीये छोए तेना विनाशनी अथवा तेना अभावथी आपणने दुःख थाय छे. कोई मनुष्यनुं घर बळतुं देखी आपणा मनमां जरा पण दुःख के चिन्ता उत्पन्न थती नथी. पण जे घरमा मारापणानो आरोप करेलो छ, तेनी एक इंट खरतां पण जाणे आत्मानुं काई ओछु थई जतुं होय तेम मनुष्योन चित्त चिन्ताग्रस्त थाय छे. बाह्य वस्तुओपर जे आटलो राग राखे ते मनुष्यने स्वजन अथवा पोताना देह उपर केटली ममता हावानो संभव छे ते लखवा करतां वांचनारनी विचार कल्पनाने सोपवू ए आ प्रसंगे वधारे उचित छे.जे वस्तु उपर आपणने अति राग होय ते नाश पामवाथी विशेष दुःख थाय छे ए तो जगतना अनुभवनी बहारनी वात नथी. जे पुत्र उपर हद करतां ज्यादा राग-आसक्ति जे मनुष्य राखतो होय ते मनुष्यने ते पुत्रनुं माथु दुखवा आवतां पण बहुज दुःख थाय छे, अने दैववशात् ते पुत्र मृत्युने शरण थयो तो तेना दुःखनी अवधी वळी. माटे जगतना सर्व पदार्थोनी, तेमज जीवोना शरीर रुप उपाधिनी अनित्यता अनुभवी ते पर अत्यंत राग धरवो नहि एज आ उपदेशनुं रहस्य छे. (राग अने प्रेमर्नु स्वरुप शुं छे ते बीजे प्रसंगे विचारीशु.) ___ दरेक बाबतनी हद्द होय छे. सुखनी मर्यादा होय छे, तेम दुःखनी पण होय छे. श→ उपर रोष करवाथी ते आपणा उपर वधारे क्रोध करे ए स्वाभाविक छे. कारण के शत्रु उपर द्वेष धरवो ते बळतामां घी होमवा बरोबर छे. तेथी बळतुं शान्त थवाने बदले वृद्धि पामे छे, तेथी शत्रु उपर रोष न धरवो. पण आ उपदेशरत्नमाला तो एटले सुधी जणावे छे के