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________________ (१७) पांचमो शत्रु छः विकथा अनेक प्रकारनी छे. आपणे आपणो अमूल्य समय लोकोनी कुथली करवामां गाळीए छीए अने तेनो सदुपयोग करता नथी. जीवो पारका छिद्र जोवामां आनंद माने छे, पण ते छिद्रथी पण अधिकं पोतानां छिद्र ते जोई शकतो नथी, माटे आत्महितार्थी जीवे जेम बने तेम आ शत्रु उपर जय मेळववाने सत्संग करवो, सारां पुस्तको वांचवां, अने परनी निंदाने बदले तेना गुणग्राही थq. कदापि विश्वासुने छेतरवो 'नहि. कोई पण मनुष्यने छेतरवो ते मोटुं पाप छे, पण विश्वासघात तो तेथी पण वधारे अधम छे. हालनो समय एवो छे के आपणने कोई मळे अने पुछीए के "भाई केम उदासी" तेना जवाबमां कहे के "नथी मळ्यो कोई विश्वासी" आ शब्दो सुचवे छे के घणा मनुष्यो तेमना पर विश्वास राखनारने छेतरे छे, पण ज्यारे सामा मनुष्यने तेमनी कपटजाळ मालुम पडे छे, त्यारे केवळ तेमना पर विश्वास राखतो नथी एटलुंज नहि, पण समग्र मनुष्य जातिपर विश्वास करतो अटके छे. आ प्रमाणे विश्वासघातथी मनुष्यपरनो विश्वास उठी जाय छे. कदापि कृतघ्न न थq. कोईए करेलो सहज पण गुण कदापि विसारवो नहि; लुण हराम करनारा सर्वत्र निन्दाने पात्र थाय छे. माटे सर्वथा उपकार करनारनो बदलो वाळवो, एज परम उपदेश सामान्य शब्दोमां वर्णवेलो छे. रञ्चिज्जइ सुगुणेसु, बझइ राओ न नेहवज्जेसु ॥ किंखइ पत्तपरिखा,दक्खाणइमो अकसवट्टो॥११॥ __अर्थः--गुणवाळाने देखी राजी थर्बु, स्नेह रहित पुरुषो तरफ राग न करवो, पात्रनी परीक्षा करवी; आ डाह्या पुरुषनी कसोटीनो पत्थर छे. ॥११॥ भावार्थ:-गुणवालाने देखी राजीथकुं-गुणी पुरूषोने जोवाथी राजी कोण थाय ? जेना मनमां गुण प्रति प्रेमभाव होय, अने जे गुण मेळववा इच्छा राखतो होय, तेवो पुरूषज गुणीने देखी राजी थाय. गुण उपर प्रेम थवाथी तेवा गुणो आपणामां छे के नहि तेवा विचार स्वभाविक रीते हृदयमां बेठा थाय छे, अने ते विचारानुसार पोताना गुणदोषनी पोताने खबर
SR No.022143
Book TitleUpdesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
PublisherSuriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
Publication Year1935
Total Pages80
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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