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________________ श्री वैराग्य शतक ४५ : राचनारी राणीने आ न गम्युं - ए राजाने मारी नाखवाना उपाय चिन्तववा लागी पोताना पुत्रने बोलावीने कधुं के तारा पिता राज्यने वेडफी नाखे छे, श्रावक थया पछी तारी - मारी के राज्यनी बिलकुल दरकार करता नथी, माटे तुं तेने कोईपण उपाये मारी नाखी राज्य लई ले ने सुखेथी भोगवः सडेल पानने दूर करवामां ज श्रेयः छे. माताना आवा वचन सांभळी, कुंवर चूप रह्यो, कांई बोल्यो नहिं राणीए विचार्यु छोकरो ! निःसत्त्व-बायलो - बीकण छे. ए कांई करशे नहिं ने वात फोडी नाखशे माटे हुं ज आ वातनो जलदी निकाल लावुं, एम विचारी राजाने भोजन करवा बोलाव्योचालाकीथी भोजन करता राजाना भोजनमां झेर- भयंकर विष भेळवी दीधुं. ए झेरथी राजाने सहन न थाय तेवी अंगे-अंगमां पीडा थई. राजाने खबर पडी के आकृत्य राणीनुं छे तोपण तेना पर क्रोध न करता, पौषधशाळामां जईने अनशन करी, नमुत्थुणं चिन्तवता, केशि- गणधरनुं शरण लई काळधर्म पामी, सूर्याभदेव थया. सुकुमालिकानुं दृष्टान्त पूर्वे चंपापुरीमां अत्यंत विषयासक्त जितशत्रु नामे राजा हतो. तेने सुकुमालिका नामे राणी हती. मंत्री वगेरे ए संप करी, राज्यमां ध्यान नहि देतां राजाने अने राणीने खुब दारु पीवडावी दूरदूर जंगलमां मूकावी दीधा. घेन उतरी गयुं एटले विचार करवा लाग्या, के आपणे अहिं क्यांथी ! राज्य पाट कयां गयां पछी बन्ने उभा
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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