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________________ श्री वैराग्य शतक माटे कामण-टुंबण करे, दोरा-धागा करे, अडदना लाडु मंत्रीने मुकावे-खवडावे. अडदना पुतळा दाटी राखे कैंक करे, न करवानुं करे. ए दुष्कृत्यथी नज डरे, हे चेतन ! एवी स्त्रीमां मोहे छे, बधी विपत्तिनुं ए कारण छे. एनी चाहना छोडी दे, तारूं न गुमाव, चेती जा, समजी जा. (३०) (३१) ए अबळा नथी प्रबळा छे. एमां न फसावा उपदेशबीकण थईने मोटा मोटां साहस कार्यों करवा जाय, पतिपुत्र के भाईव्हेन पण क्षणमां जेनाथीय हणाय. दिवसे कागथकी बीवे ने निशिए नदीए तरवा जाय. सर्व दुःख, साधन एवी स्त्रीने चेतन ! शाने व्हाय विवेचन-स्त्री बहारथी बीकण- देखाय, सुकोमल लागे, अतिशय मृदु-पोची जणाय. पण बधुं बहारथी, ए विफरे त्यारे भल-भलाने डरावे, ए एवा एवा साहस खेडे के जाणीने आश्चर्य थाय. ए अतिशय भयंकर स्थाने भटके, एने कोईनो भय न लागे. पोतानी आडे आवता पति के पुत्र, मा के बाप, भाई के ब्हेन, कोईने न जोवे गमे ते होय नहि, एनी गरदन पर छुरी फेरवतां-चलावतां ए- काळजु न कम्पे. निरङ्कुशा नरे नारी. तत्करोत्यसमञ्जसम् । यत्कुद्धां सिंहशार्दूला व्याला अपि न कुर्वते ॥१॥
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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