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________________ १४४ श्री वैराग्य शतक करेला पैसा बंगला मोटर बगीचा कारखानाओथी पलकमां सदाने माटे जुदा पडवानो अवसर आवी लागशे, त्यारे तुं शुं करीश ? अथवा तो माथे टाल पडशे, कानथी ओछु संभळाशे, आंखे बराबर सुझशे नहिं, पाणी टपकया करशे, नाकमांथी लींट चुया करशे, मोढामांथी लाळ चाली जती हशे, उधरस अने दमथी छाती भराई गई हशे, हाथ पगनी शक्ति नरम पडशे. कम्मर वळी गई हशे, लाकडीना टेका विना चालवू भारे थई. पडशे. सहु हड हड करशे, सर्वथा परवश बनी पडशे, जीवन अकारूं लागशे स्वभाव चीडीयो बनी जशे अने एके धारणा सफळ नहि करी शकाय, त्यारे तुं शुं करीश ? विचारक प्राणी ? आवं बधुं बनतुं रोज नजरे देखाय छे, जगतना जीवोनी आवी स्थिति बनती तारामां जोवामां आवे छे. जुवानीना जोरमां अने धनवान पणानी मदांधतामां महालनाराना बुरा हाल थता नजरे जोवाय छे. तारी आ दशा नहिं आवे, एवा भरोंसे रखे बेसी रहेतो. विषय अवस्था वखते दीनता न आवे, पोकार न करवा पडे अने अशांतिमां पण शांति अनुभवाय ए माटे अत्यारथी कांईक विचार करी ले. पाणी पहेलां पाळ बांधनार समजदार गणाय. पाळ बंधी नहि अने पाणी भरायुं, तळाव फाटयुं अने धोध चारे बाजु वहेवा मांडया ते वखते पाळ नहिं बंधाय, धार्यु मनमां
SR No.022142
Book TitleVairagya Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
PublisherDhurandharsuri Samadhi Mandir
Publication Year1959
Total Pages172
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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