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________________ පුද सविकार वचन वर्जन पर वहां राग, द्वेष, मिध्यात्व और काम नाम के चार सारथी थे व उनका मोह नामक अधिपति था। वहां सोलह कषाय रूप बड़े २ बैल थे, जो कि घास पानी के बिना ही बलवान रहकर उक्त अरघट्ट को फिराते थे । · वहीं हास्य, शोक और भय आदि कठोर स्वभाव वाले कार्यकर्त्ता मनुष्य थे व उनके जुगप्सा, रति, अरति आदि परिचारक थे। वहां दुष्टयोग व प्रमाद नामक दो बड़े २ तुब थे, उनमें से विलास, उल्लास, विव्वोक, हाव भाव आदि स्वर निकलते थे । वहां असंयती जीव नामक एक गहरा कुआ था, वह सदा पापाविरती नामके पानी से परिपूर्ण रहता था । तथा वहीं पापाविरतिरूप पानी में डूबकर भरता तथा खाली होता हुआ लम्बा व मजबूत जीव लोक नामक घटीयंत्र था । वहां मृत्युरूप उच्च षट्कार ( खडखड़ाहट ) होता था व अज्ञान नामक प्रतीच्छक ( पानी निकालने वाला ) था तथा मिथ्याभिमान नामक मजबूत दापटिक था। वहां अतिसंक्लिष्ट चित्त नामकी चौड़ी नली थी व भोगलोलुपता नामक बहुत लंबी नीक (नाली ) थी । वहां दुःख परिपूर्ण जन्ममाला नामक क्षेत्र था, और भिन्न २ जन्म रूप असंख्य क्यारियां थी । असद्बोध नामी पानांतिक ( पानी पिलाने वाला ) था, कर्मरूप बीज था व उसको दुष्ट परिणाम नामक श्रमी ( मजदूर ) बोने वाला था । अतः वहां जो पाक ( धान्य ) बोया जाता था वह उक्त अरघट्ट सेसींचा जाकर तैयार होता था, हे राजन् ! वह पाक सुख दुःख रूप था । इस भांति के भव रूप अरघट्ट के कठिन
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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