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________________ बंधुमती का दृष्टांत ___८१ भी योग्य है, किन्तु वह किसी २ कुल वा किसी २ देश के लिये उचित हो सकता है परन्तु श्रावकों का तो भिन्न २ देशों में रहना संभव है अतः देश व कुल के अविरुद्ध वेष पहिरना, उसकी अनुद्भट ऐसी व्याख्या की जाय तो वह सर्व व्यापक होने से यहां संगत माना जाता है। बंधुमती का वृत्तांत इस प्रकार हैयहां ताम्रलिप्ति नामक नगरी थी, जो कि दुश्मनों से सर्व प्रकार से अजीत थी। वहां अति धनाढ्य रतिसार नामक सेठ था। उसकी शरदऋतु के चन्द्रमा समान उजवल शीलवाली बंधुला नामक स्त्री थी, उसके रूपादि गुण से सुशोभित बंधुमती नामक पुत्री थी। वह (पुत्री) हाथ में सोने की चूडियां पहिरती, शरीर का शृगार करतो और स्वभाव से ही सदैव उद्भट वेष रखती थी। । एक दिन उसके पिता ने उसको प्रेमपूर्वक वचनों से समझाया कि-हे पुत्री ! ऐसा उद्भट वेष अच्छे. मनुष्यों को उचित नहीं है। क्योंकि कहा है कि-कुल और देश से विरुद्ध वेष राजा को भी शोभा नहीं देता, तो वह वणिकों को किस प्रकार शोभे? जिसमें भी उनको स्त्रियों को तो कभी नहीं शोभता । अतिरोष, अतितोष, अतिहास्य, दुर्जनों के साथ सहवास और उद्भटवेष ये पांच बड़ों को लघु बना देते हैं। ___इत्यादि युक्तियुक्त वचन कहने पर भी उसने एक न माना, किन्तु पिता की कृपा से मौज करती हुई सदैव वैसी ही रहने लगी । भरूचवासी विमल सेठ के पुत्र बंधुदत्त ने ताम्रलिप्ति में आकर बड़ी धूमधाम से उसका पाणिग्रहण किया ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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