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प्रदेशी नृप चरित्र
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पश्चात् जब वह संदूक खोला तो उसमें उसका शरीर कृमियों से भरा हुआ देखा । अतः जबकि उसमें छेद नहीं था तो उसमें से उसकी आत्मा कैसे निकल गई। तथा उसके अन्दर उक्त अनेक कृमि किस भांति घुसे होंगे ? अतः आत्मा परभव को जाती है यह बात लंबे विचार में किस प्रकार टिक सकती है?
- अब करुणा जल के समुद्र गुरु बोले:-यहां किसी नगर में कोई शंख बजाने वाला रहता था। उसके पास ऐसी लब्धि थी कि-वह चाहे जंगल में जाकर शंख बजाता तो भी लोग ऐसा मानते थे कि-मानो वह कान के समीप ही बजाता हो ।
वहां का राजा एक समय संडास में गया । इतने में वह शंख का शब्द सुनकर शंका से आकुल हुआ, जिससे उसको बड़ीनीति न हुई । उससे उसने उस शंख बजाने वाले को मारने की आज्ञा दी । तब वह बोला कि-हे नाथ ! यह तो मेरी लब्धि है, कि-दूर से शब्द होने पर भी ऐसा लगता है मानो कान के पास में होता हो । ऐसा कैसे हो सकता है ? यह परीक्षा करने के हेतु राजा ने उसे लोहे की कोठी में डाला व बाद में उसे मोम लगाकर बन्द किया।
अव उसने शंख बजाया तो सारी सभा बहरी हो गई। तब उसमें छेद आदि देखे गये पर कहीं न दीखे । तथा लोहे के पिंड में अन्दर जो विवर न हो तो उसमें अग्नि के परमाणु कैसे प्रवेश करें कि-जिससे वह जलती हुई अग्नि के गोले के समान दीखता है ? इस भांति जबकि मूर्त शब्दादि को भी जाते आते रुकावट नहीं होती तो फिर अमूर्त जीव को न हो इसमें कौनसा दोष है ?