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________________ २७८ वरुण का दृष्टांत इस प्रकार अनंतकाल भवाटवी में भटकता हुआ और महान् दुःख सहता हुआ जीव महा कठिनता से जाति और कुल मय मनुष्य जन्म पाता है। इसलिये हे भव्यो ! तुमने इस समय भव भव के दुःख को नाश करने में समर्थ और मोक्ष सुख का एकमात्र कारण, ऐसा मनुष्य जन्म पाया है। अतः निष्कलंकपन से चारित्र धर्म पालो। ___ यह सुन अनन्त दुरन्त संसार के भ्रमण से डरने वाले वरुण ने श्री धर्मवसु मुनिराज से दीक्षा ले ली । वह सदागम के अनुसार समस्त क्रियाएं करता हुआ निर्मल केवल ज्ञान पाकर मोक्ष को पहुँचा। इधर सुलस को दृष्टिराग बलात् भिन्न-भिन्न लिंगियों की और खेचने लगा जिससे वह मूढ़ होकर उन सब में अति भक्ति रखने लगा। तब प्रथम का कुलिंगी क्रु द्ध होकर विचारने लगा कि-अहो ! यह तो कृतघ्न है जिससे मेरी अवहेलना करके दूसरों का दृढ़ भक्त बना है । यह सोचकर उसने सुलस को लक्ष्य कर मंत्र यंत्र के प्रयोग करने के लिये लोहे की सुइयों से बिंधा हुआ दर्भ का पुतला बनाया । तब सुलस सर्व अंगों में होती हुई पीड़ा से व्याकुल होकर, अशुभ ध्यान में मर करके नरक को गया और अभी आगे भी अनन्त संसार में भटकेगा। इस प्रकार दुष्ट दृष्टिराग की टेव से डरने वाले वरुण का वृत्तान्त सुनकर हे भव्यों । तुम नित्य जिनागम के अनुसार ही सकल प्रवृत्तियां करो। इस प्रकार वरुण की कथा पूर्ण हुई ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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