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________________ २६६ गुरुवन्दन के बत्तीस दोष का मूल्य विचार कर गुरु मेरे साथ प्रीतिभंग नहीं करेंगे, ऐसा विचार कर वन्दन करना सो सर्व कारण दोष है।। दूसरों से अदृष्ट हो कर वन्दन करे, और कहीं मेरी हीनता न हो जाय इस विचार से चोर की भांति छिपे सो स्तैनिक दोष है ।आहार अथवा निहार के समय वन्दन करे सो प्रत्यनीक दोष है । रोष से धमधमता हुआ वन्दन करे सो रुष्ट दोष है । ___ वन्दना करते ऐसा बोले कि तुम काष्ट के शिव समान न कोप करते हो और न कृपा करते हो सो तर्जित दोष कहलाता है अथवा गुरु को नमन करते मस्तक और अंगुलियों से तजेन करे सो तर्जित दोष कहलाता है । वन्दना करने से विश्वास जमेगा, इस भांति वास्तविक भाव में शिथिल हो ठगने के लिये वन्दना करे सो शठ दोष है । क्योंकि कपट, कैतव और शठता ये सब एकार्थ हैं। अरे ! ये तो गणि हैं, वाचक हैं, ज्येष्ठ हैं, आर्य हैं, इनको मेरे नमने से क्या होगा ? इस प्रकार बोलकर वन्दन करना सो हीलित दोष है । आधा वन्दन करते बीच ही में विकथा चलाना, सो परिकुचित दोष कहलाता है । ___ अन्तरित हो अथवा अंधेरे में हो तो वन्दना न करे और दीखता हो तो वन्दन करे, यह दृष्टादृष्ट दोष है । ललाट के पास दो अंजली बांधकर वन्दना करे सो शृग दोष है । वन्दना करते उसे कर के समान आहे तिक ( अर्हत् का ) कर माने, सो कर दोष हैं और ( मन में चिन्तवन करे कि) लौकिक कर से छूटे किन्तु वन्दन के कर सेनहीं छूटते, सो करमोचन दोष है । रजोहरण और मस्तक पर हस्त लगे, नहीं लगे उससे चौभंगी होती है । वहां रजोहरण और मस्तक बिलकुल लगाकर
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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