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________________ गरिका परिहार पर . २५२ यह सुनकर सब दर्शनों वाले दौड़-दौड़ करके वह पद उतार अपनी शक्ति के अनुसार छन्द बना राज सभा में आकर आशीर्वाद बोल कर एकत्रित होकर बेठे । तब राजा के हुक्म से सुगत (बुद्ध) का शिष्य इस प्रकार बोला:-- मालाविहारमि मइज्ज दिट्ठा उवासिया कंचणभूसियंगा। वक्खित्तचित्तण भए न नार्य सकुडलं वा वयणं न वत्ति ।। आज मैंने मालाविहार में एक सोने से सुसज्जित उपासिका देखी, किन्तु मेरा चित्त विक्षिप्त होने से उसके बदन में कुडल थे कि नहीं, यह मैं नहीं जान सका। दूसरा बोला-- भिक्खा भमतेण मइज्ज दिट्ठ पमदामुह कमलविशाल नेत्त। वक्खित्तचित्तण मए न नायं सकुडलं वा वयणं न वत्ति ।। आज मैने भिक्षार्थ फिरते हुए कमल समान विशाल नेत्र युक्त प्रमदा का मुख देखा किन्तु मेरा चित्त विक्षिप्त होने से उसके वदन में कुडल थे कि नहीं, सो मैं नहीं जान सका। तीसरा बोला फलोदएणम्हि गिहं पविठ्ठो तत्थासणत्था पमया मि दिट्ठा। बक्खित्तचित्तण मए न नायं सकुडलं वा वयणं नवत्ति ।। देवयोग से मैं एक घर में घुसा, वहाँ मैंने आसन पर बैठी हुई प्रमदा को देखा, किन्तु मेरा चित्त विक्षिप्त होने से उसके वदन में कुडल थे कि नहीं, सो मैं जान सका नहीं।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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