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________________ २५० नवमाँ भेद गड़रिका परिहार पर पिता, नगर जन तथा उसके श्वसुर जन आदि सब जिन-धर्म के रागी हो गये । तब श्वसुर ने प्रसन्न हो अपनी पुत्री को पति के घर भेजी। तब से अमरदत्त सकुटुम्ब जिन-धर्म करने लगा। इस प्रकार चिरकाल निर्मल सम्यक्त्व का गृहस्थ-धर्म पालन कर वह प्राणत नाम के बारहवे देवलोक में देवता हुआ। और महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष को जावेगा। इस प्रकार अमरदत्त का यह निर्मल चरित्र हर्षपूर्वक विचार कर हे विवेकीजनों! तुम सबसे अधिक दर्शन शुद्धि धारण करो, जिससे कि महोदय पाओ। ... इस प्रकार अमरदत्त का दृष्टान्त पूर्ण हुआ। इस भाँति सत्रह भेदों में दर्शन रूप आठवां भेद कहा, अब गडरिकाप्रवाह रूप नवमाँ भेद कहते है:-- गड्डरिगपवाहेणं गयाणुगइयं जणं बियाणंतो। परिहरह लोगसन्नं ससमिक्खियकारओ धीरो ॥६८॥ मूल का अर्थ--गाडरप्रवाह से गतानुगतिक लोक को जान कर लोकसंज्ञा का परिहार कर, धीर पुरुष सुसमीक्षितकारी होता है। ____टीका का अर्थ--गाडरे याने भेड़े उनका प्रवाह अर्थात् एक के मार्ग में सबका चलना सो गडरिका प्रवाह है। द्वार गाथा में आदि शब्द है। वह चींटी, मकोड़ी आदि के प्रवाह को सूचित करता है। गडरिका प्रवाह से गतानुगतिकपन से अर्थात् बिना विचारे चलते हुए लोक को जानता हुआ बुद्धिमान पुरुष लोकसंज्ञा को याने कि--बिना विचारे उत्तम लगने वाली लोकरूढ़ि
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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