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प्रथम व्रत के अतिचार
वध याने लकड़ी वा चाबुक से मारना यहां भी अर्थ-निरर्थक की विचारणा बंध के अनुसार करना चाहिये विशेषता यह है किनिरपेक्ष सो निर्दय ताड़न है जबकि- धाक से भी न डरकर कोई विरूद्ध चले, तब मर्म त्याग कर दया रख करके उसे लता व रस्सी से एक दो बार मारना सापेक्ष वध कहलाता है। ' छवि याने त्वचा, त्वचा के योग से शरीर को भी छवि कहा जा सकता है उसका छेद याने उस्तरे आदि से काटना सो छविच्छेद. यहाँ भी पूर्वानुसार भावना कर लेना चाहिये. केवल हाथ, पांवर कान, नाक तथा गल पूछ आदि अवयवों को निर्दयता से काटना निरपेक्ष माना जाता है तथा शरीर में दर्द रूप से स्थित अरु, गांठ वा मांसांकुर आदि को सदयता से काटना सापेक्ष है।
भार याने भरना, अतिशय भार सो अतिभार, बैल आदि की पीठ पर बहुत-सा धान्य या सुपारी आदि माल लादना सो अतिभारारोपण. यहाँ पूर्वाचार्यों ने इस भांति विचारणा बताई है।
मनुष्य वा पशु के ऊपर बोझा लाद कर जो जीविका की जाती है सो श्रावक ने नहीं करना चाहिये कदाचित् करना ही पड़े तो मनुष्य से इतना भार उठवाना कि जितना वह स्वयं ही उठा ले या उतार ले. चौपाया जानवर भी जितना भार उठा सके उससे कम उस पर लादना चाहिये तथा हल व गाड़ी में से उसे योग्य समय पर छोड़ देना चाहिये।
भक्तपान याने भोजन, पानी बन्द रखना सो भक्तपानव्यवच्छेद. यहाँ भी प्रथमानुसार अर्थानर्थ की चिंता करना चाहिये उसमें रोग निवारणार्थ सो सापेक्ष है व अपराधी को केवल वाणी ही से डराना चाहिये कि- आज तुमें खाने को नहीं दूंगा तथा शांति निमित्त उपवास कराना पड़े तो सापेक्ष जानो, किंबहुना