SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विजयकुमार का दृष्टांत . २०७ वालों को सचमुच इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, आपदाएँ, अर्थनाश और मृत्यु भी आजावे, उसमें कौन सी विशेषता है । क्योंकि इन्द्रियों से विवेक-हीन हुआ मनुष्य आधे क्षण में जाति, कुल, विनय, श्रत, शील, चरण, सम्यक्त्व, धन तथा शरीर आदि हार जाता है। और भी कहा है कि-इस भूमि पर काल रूपी बाजी मंडी हुई है, उसमें पक्ष रूपी खाने हैं, और रात्रि दिवस रूप पासे फेके जाते हैं, उसमें कोई कोई ही सच्चे पासे डालकर मोक्ष को जीतता है, शेष सब तो उलटे पासे डालकर हारते ही रहते हैं। तू विजितेंद्रिय पुरुषों में चूड़ामणि समान है। क्योंकि तू उस समय रत्नावली के वचनों से मोहित नहीं हुआ, अतएव तुझे बारंबार नमस्कार हो । वीर पुरुषों का पट्टबंध तुझे ही बांधना चाहिये, कि-जिसने तरुणावस्था में जगत के साथ लड़ने वाली इन्द्रियों को झपाटे से जीता है। . इस प्रकार कुमार को प्रशंसा करके वह उसे कहने लगा किहे वत्स ! मेरा यह राज्य तू ग्रहण कर, और मैं तो कठिन श्रमणत्व का पालन करूगा । ____यह सुन अंजली जोड़कर कुमार कहने लगा कि - हे तात ! ऐसे संसार में मुझे भी यही करना चाहिये, कारण कि यहां यही दृष्टान्त उपस्थित है। तब अमिततेज राजा ने अपने भानजे को राज्य सौंप भव से विरक्त हो सुगुरु से दीक्षा ग्रहण की। अब कुमार वहां से लौटकर विमलशल के शिखर पर आया वहां उसको निर्मल शीलवाली शीलवती देखने में नहीं आई ।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy