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________________ व्रत के भंग . तो अन्त में ग्यारहवीं बार द्वादश व्रत के संयोग के भंग १३८४१२८७२०० होंगे। तेरस कोडिसयाई-चुलसी कोडीउ, बारस य लक्खा । सगसीइ सहस दो सय - सव्वग्गं छक्कभंगीए ॥ १ ॥ तेरह सौ शतकोटि (अरब), चौरासी करोड़, बारह लाख, सित्यासी हजार, दो सौ। इतने सब मिलकर छः भंगी के भंग होते हैं। . नवभंगी में पहिले व्रत में नव भंग हैं, उससे द्विकादि व्रत संयोग में उस संख्या को दश से गुणा करके, नव जोड़ने के क्रम से चले जाना, तो ग्यारहवीं बार बारह व्रत के संयोग के भंगों की संख्या नीचे लिखे अनुसार होती है: (९९९९९९९९९९९९) ., इकवीस भंगों में प्रथम व्रत में २१ भंग हैं, जिससे द्विकादि व्रत संयोग में बावीस से गुणा कर, इकवीस जोड़ते जाना तो ग्यारहवीं बार बारह व्रत के संयोग के भंगों की संख्या। । १२८५८००२३३१०४९२१५ उनपचास भंगों में प्रथम व्रत में ४९ भंग हैं जिससे द्विकादि व्रत संयोग में पचास से गुणा करके ४९ जोड़ते, ग्यारहवीं बार बारह व्रत के संयोग के भंगों की संख्या। २४४१४०६२४९९९९९९९९९९९९ १४७ भंगों में प्रथम व्रत में १४७ भंग हैं, जिससे द्विकादि व्रत संयोग में १४८ से गुणा कर १४७ जोड़ने से ग्यारहवीं वार बारह व्रत के संयोग के भंगों की संख्या नीले लिखे अनुसार होती है१,१०,४४,३४,६०,७०,१९,६१,१५,३३,३५,६९,५७,६९५
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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