SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इन्द्रिय का स्वरूप १९९ इन्द्रिय द्वारा जान सकता है, अतः उपयोग के हिसाब से सब एकेन्द्रिय होते हैं। तब द्वीन्द्रिय आदि भेद कैसे होते हैं, उसके लिये कहते हैं -शेष इन्द्रियों की अपेक्षा से जीवों के एकेन्द्रियादिक भेद पड़ते हैं, इसी प्रकार लब्धि की अपेक्षा से सर्व पंचेन्द्रिय हैं। ___ सर्व पंचेन्द्रिय क्यों हैं ? उसके लिये कहते हैं जैसे बकुलादिक को शेष इन्द्रियां भी उपलंभ दीखती हैं, उससे उनको तदावरण के क्षयोपशम का संभव है। पंचेन्द्रिय मनुष्य के समान बकुल वृक्ष विषय का उपलंभ करता है, तथापि बाह्य इन्द्रियों के अभाव से वह पंवेद्रिय नहीं माना जाता। वैसे ही कुभार सोता रहने पर भी कुभ बनाने की शक्ति वाला होने से कुभकार कहलाता है, वैसे वाह्य इन्द्रियों से रहित होने पर भी लब्धि इन्द्रिय को अपेक्षा से पंचेन्द्रिय कहा जा सकता है। ___ चक्षु का उत्कृष्ट विषय अंगुल अधिक लक्ष योजन है, त्वचा का उत्कृष्ट विषय नव योजन है, श्रोत्र का उत्कृष्ट विषय बारह योजन है, जवन्य विषय सबका अंगुल का असंख्यातवां भाग है। भास्वर द्रव्य के आधार से अधिक विषय भी रहते हैं, क्योंकि पुष्कराई द्वोप के मनुष्य पूर्व पश्चिम ओर इकीस लाख चौवीस हजार पांच सौ सैतोस योजन पर उदय हुए सूर्य को देख सकते हैं। __ इन्द्रियां चाल याने शीघ्रगामी घोड़े हैं, वे दुर्गति मार्ग में दौड़ने वाले है, उनको सदैव भवस्वरूप की भावना करने
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy