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________________ अचलपुर के श्रावकों का दृष्टांत १७९ ॐॐ चलता था जिससे लोग विस्मित होते थे । उसे देख भारी मिध्यात्व रूप ताप से तपे हुए मुग्ध-जन पाड़े के समान अन्य दर्शन रूप पंक में जटिलता से फंस गये। वे श्रावकों के सन्मुख बढ़ाई करने लगे कि हमारे शासन में प्रत्यक्ष रीति से जैसा गुरु का प्रभाव दृष्टि में आता है वैसा तुम्हारे में नहीं। तब वे श्रावक इस भय से कि कहीं मुग्ध-जनों को मिथ्यात्व में स्थिरता न हो जाय, उत्सर्ग मार्ग पकड़ कर उसे आंख से भी नहीं देखते थे । अब वहां कुमत के प्रमोद रूप कैरव को मोडने में सूर्य समान वैरस्वामी के मामा श्री आर्यसमितसूरि का समागम हुआ । तत्र वे सर्व श्रावक धूमधाम से तुरन्त उनके सन्मुख आ पृथ्वी पर मस्तक नमा कर उनके चरणों को प्रणाम करने लगे । वे आंखों में भर कर दीन वचन से अपने तीर्थों की ओर उक्त तापस का किया हुआ सम्पूर्ण तामसी असमंजस उनको कहने लगे । तब गुरु बोले कि - हें श्रावकों ! यह कपटी किसी पादलेप आदि उपाय से भोले लोगों को ठगता है। इस रंक तापस के पास तप की कुछ भी शक्ति नहीं। यह सुन वे गुरु को वंदना करके अपने घर आये । अब वे चतुर श्रावक अपवाद सेवन का समय जान कर उस तपस्वी को भोजन के लिये निमंत्रण करने लगे । वह तापस भी बहुत से लोगों के साथ एक श्रावक के घर आ पहुंचा। उसे देख कर वह समयज्ञ श्रावक सन्मुख उठ कर मान देने लगा । व उन्हें बैठा कर कहा कि आपके चरण कमल धुलवाओ क्योंकि महापुरुषों के सन्मुख अर्थी की प्रार्थना विफल नहीं होती । तापस की इच्छा न होते भी गरम पानी से पग भिगो कर वह इस प्रकार धोने लगा कि वहां लेप की गंध भी न रही।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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