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________________ जीर्ण सेठ का दृष्टांत जीर्ण सेठ होते हुए भी उसकी धर्म पर वासना अजीर्ण थी, वह त्रैलोक्य में सूर्य समान जिनेश्वर को देखकर कोक पक्षी के समान हर्षित हुआ । वह उनके ध्यान में विघ्न किये बिना अपने जन्म का फल प्राप्त करने के लिये जगत् पूज्य जगद् गुरु की सेवा करने लगा । १५९ वह चिरकाल सेवा करके अपने घर आया । उसने विचार किया कि - भगवान आज कहीं भी गये नहीं, अतः उपवासी होना चाहिये । इस प्रकार नित्य सेवा करता हुआ वर्षाकाल पूर्ण होने पर विचार करने लगा कि- जो स्वामी मेरे घर पधारें, तो अच्छा है । इस भांति ध्यान करके व स्वस्थ मन से चिरकाल तक घर में रहा और मध्याह्न के समय घर के द्वार पर खड़ा रहकर इस प्रकार सोचने लगा- जो आज यहां जंगम - कल्पवृक्ष समान वीर प्रभु पधारेंगे तो मस्तक पर अंजली बांधकर सन्मुख जाऊँगा और उनकी तीन प्रदक्षिणा देकर परिवार सहित वंदन करूगा और फिर उनको निधान के समान घर में लाऊँगा और वहां उनकी उत्तम प्रासुक एषणीय आहार, पानी से भक्ति पूर्वक पारणा कराऊँगा, जो कि ( पारणा ) संसार - समुद्र तारने में समर्थ है । पुनः उनको नमन करके कुछ पद उनके पीछे जाकर तत्पश्चात् अपने को धन्य मानता हुआ शेष रहा हुआ खाऊँगा । इस प्रकार जिनदत्त सेठ मनोरथ करता था, इतने में श्री वीरप्रभु भिक्षा के हेतु अभिनव सेठ के घर पधारे। उसने दासी के हाथ से चाटू द्वारा भगवान को उड़द दिलवाये। जिससे उस सुपात्रदान से वहां पच-दिव्य प्रकट हुए । वहां राजा आदि एकत्रित होकर उस सेठ की प्रशंसा करने लगे और प्रभु भी वहां पारणा करके अन्य स्थल में विहार करने
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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