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________________ सुदर्शन सेठ की कथा १३ सकल जंतुओं को त्राण करने में समर्थ हैं प्रताप गुण जिनका और तीनों जगत् के लोगों ने नमन किया हैं चरणों को जिनके, ऐसे वीर प्रभु ही मेरे आधार है । यह कहकर वह सागारी अनशन करके सर्व जीवों को खमाने लगा । उसने अपने दुष्कृतों की निन्दा की तथा समस्त सुकृतों की अनुमोदना की । उसने चिन्तवन किया कि, जो मैं इस उपसर्ग से मुक्त हो जाऊगा तो कायोत्सर्ग पारू गा यह सोच व कायोत्सर्ग कर नवकार का ध्यान करने लगा । अब यक्ष मुद्गर को उछालता हुआ उस पर आक्रमण करने में असमर्थ होकर, शान्त हो, निर्निमेष दृष्टि से उसे देखता हुआ क्षणभर वहां स्तंभित हो गया । पश्चात् वह यक्ष अपना मुद्गर ले उसके शरीर में से निकलकर अपने स्थान को चला गया, तब कटे हुए वृक्ष के समान अर्जुनमाली भूमि पर गिर पड़ा। तब उपसर्ग दूर हुआ जानकर सुदर्शन सेठ ने कायोत्सर्ग पूर्ण किया इतने मैं अर्जुनमाली को भी चेत हुआ, तो वह सुदर्शन सेठ से इस भांति कहने लगा। तू कौन है ? और कहां जाता है ? तब सुदर्शन सेठ बोला कि मैं श्रावक हूँ और वीर प्रभु को नमन करने तथा धर्म कथा सुनने को जा रहा हूँ। तब अर्जुनमाली बोला कि - हे सेठ ! तेरे साथ चलकर मैं भी उक्त जिन को नमन करना तथा धर्म सुनना चाहता हूँ । हे भद्र ! जिन वंदन और धर्म कथा का श्रवण करना यही इस मनुष्य जन्म का उत्तम फल है । यह कह उसे संग ले सुदर्शन सेठ ने समोसरण में आ पांच अभिगम पूर्वक प्रयत होकर जिनेश्वर को बन्दना की । वह हर्षाश्रु से परिपूर्ण - नेत्र तथा विकसित-मुख हो, हाथ जोड़, शुद्ध अन्तः करण से भक्ति व बहुमान पूर्वक इस प्रकार प्रभु की देशना सुनने लगा । यथा
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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