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अर्वचक क्रिया पर
... हरिनंदी कौन था? उसकी कथा कहते हैं
उज्जयिनी नगरी के बाहिर के बाजार में एक हरिनंदी नामक दरिद्र वणिक व्यापार करता था। उसकी दूकान पर समीप के ग्राम से एक ग्वालिन घी आदि लेकर बेचने आई। वह बेचकर नमक, तैल आदि लेकर वह बोली कि-हे सेठ ! दो रुपये की बढ़िया रूई दो। ___ उस समय रूई महगी थी, जिससे हरिनंदी ने एक रुपये की रूई दो बार तौल कर दी, उसे ग्वालिन ने गांठ में बांध ली। उसे वैसा करती देख ठग-सेठ सोचने लगा, आज मैंने बिना परिश्रम एक रुपया पैदा किया। ___यह सोच उस ठग ने उस भोली को झट रवाना किया इतने में यहां उसकी स्त्री तावड़ी लेने को आई । वह तावड़ी लेकर जाने लगी इतने में उक्त वणिक ने उसे कहा कि-यह घी, शक्कर ईधन आदि ले जा, और शीघ्र ही बहुत सा घेवर बनाना ।
वह उन्हें लेकर घर आई व प्रसन्न होकर घेवर बनाने लगी और सेठ बाजार से उठकर नदी पर नहाने गया । इतने में उसके घर उसका जमाई मित्र सहित आया, वह शीघ्रता के कारण घेवर खाकर चला गया। ___ अब सेठ नहाकर घर आया और सदेव के अनुसार भोजन परोसा हुआ देखकर क्रोधित हो अपनी स्त्री को इस प्रकार कहने लगा । अरी आलसिन ! घेवर क्यों नहीं बनाया ? वह बोली किकिया था, किन्तु वहं सब तुम्हारा जमाई मित्र के साथ आकर खा गया ।
यह सुन वह खिन्नता से वही भोजन करके शहर के बाहिर जाकर अनुताप करके अपनी इस भांति निन्दा करने लगा।