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कमल सेठ का दृष्टांत
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वह तो गर्भवती है, अतः प्रसव करने के लिये इस वन में गई है और इसी शहर में उसकी माता रहती है। अतः उसे यह बात कहने के लिये मातंग को भेजा है। पुनः वह बोला कि- मैं तो ब्राह्मण हूँ और वह वणिक की स्त्री है, वह पति के मारने से रुष्ट होकर आई जिससे पडौसी होने के कारण मैं उसे इन्कार न कर सका । इतने में वहां उसकी माता व उक्त मातंग भी आगये और उस स्त्री को पुत्र उत्पन्न हुआ, यह ब्राह्मण को उसने कहा ।
यह जानकर कमल और विमल अपने घर की ओर चले, तब सागर ने विमल को कहा कि- तुम्हारा माल मेरे घर भेजना।
विमल बोला कि- हे मित्र ! तुझे जैसा अच्छा लगे, वैसी हमारी हँसी कर । तब सागर ने विचार किया कि- इस समय यह झगड़ा करने का क्या काम है ? यह सोचकर वह सम्पूर्ण माल अपने बाड़े में रखवा कर अपने घर आया और वे दोनों भी घर पहुंचे। ___ अब विमल नवीन मेघ के सदृश मलीन मुख होकर कहने लगा कि- हे तात ! यह आपत्ति का समुद्र किस प्रकार पार किया जा सकेगा? हे तात ! आप मध्यस्थ भाव से यहां वास्तविक बात विचारिये कि- देखिये, हंसते-हंसते कहे हुए वाक्य भी कैसे लंबे हो गये हैं । अतएव आप जाकर सागर समान दुःपूर सागर को समझाइए कि-हंसी में कह देने से कोई अपना धन दे नहीं देता है । ____ तब सत्य प्रतिज्ञ कमल कमल के समान कोमल वचन बोला कि-हे वत्स ! कुमार्ग में मत जा, और नीति-निपुण होकर तेरे वचनों को स्मरण कर । हे पुत्र ! सत्पुरुष हंसी में भी जो कुछ बोलते हैं, उसका भी निर्वाह करने में उनकी सदैव दृढ प्रतिज्ञा उल्लसित होती है।