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________________ कमल सेठ का दृष्टांत १३७ इतने में असमय बरसात होने से उसके पानी से रास्ते भर गये इससे कितनेक दिन तक वह तम्बू लगाकर वहीं रहा । उसी । समय उसी के नगर का वासी सागर नामक वणिक समुद्र उतर कर वहां आया उसे देखकर विमल कहने लगा कि-- हे भद्र ! आओ, अपन साथ मिलकर अपने नगर को चलेंगे। सागर बोला कि- हे मित्र ! मेरी पन्द्रह दिन प्रतिक्षा करो तदनुसार विमल ने स्वीकृत किया । अब कमल पुत्र विमल ने सागर सेठ का जो माल बिका उसमें से हस्त संज्ञादिक से दस सहस्र स्वर्णमुद्राएँ पचा लीं । कार्य पूरा होने पर वे दोनों सोम और भोम के सटश सौम्य और भीम गुणयुक्त घोड़ों पर चढ़कर अपने नगर की ओर चले । वे अपने नगर के समीप आये तब कमल सेठ अपने पुत्र के सन्मुख आया तो इन दोनों ने उसे प्रणाम किया। पश्चात् वे तीनों साथ-साथ चलने लगे । इतने में सागर बोला क-हे पवित्रमति मित्र ! मैं तुझे दृष्ट सदृश कुछ अदृष्ट भी कहता हूँ। यहां से कुछ दूर पर उत्तम आमों से भरी हुई गाड़ी जा रही है, उसे कुष्ठ रोग पीडित ब्राह्मण हांक रहा है, उसमें दायीं ओर गलीआ बैल जुता हुआ है और बायीं ओर लंगड़ा बैल जुता हुआ है। गाड़ी के पीछेपीछे उससे लगे बिना चांडाल पैदल-पैदल जा रहा है व किसी की बहू सगर्भा होते रुष्ट होकर लौटी है, उसके गर्भ में लड़का है। ___ उस स्त्री के अंग में कुकुम लगा हुआ है, सिर में वह बकुल पुष्पों की माला पहिने हुए है, उसके शरीर में फोड़े हो रहे हैं, उसकी साड़ी लाल है और शीघ्र ही प्रसव करने वाली है, वह स्त्री उस गाड़ी पर सवार है।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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