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________________ जयंती श्राविका का दृष्टांत १२५ आदि में प्रवृत्त होने से अथवा खड्ग आदि बनाने से हो सो अधिकरणिकी (२), जीव अजीव पर प्रद्वेष लगने से हो सो प्राद्वेषिकी (३), निर्वेद (खेद) करने से तथा क्रोधादि से स्वपर को परिताप करने से होय सो पारितापनिकी (४), प्राणातिपात करने से होय सो प्राणातिपातिकी (५), कृष्यादिक आरंभ से होय सो आरंभिकी (६), धान्यादिक पंरिग्रह से होय सो परिग्रहिकी (७) माया याने पर वंचन से बने सो माया प्रत्ययिकी (5), जिनवचन के अश्रद्धान से बने सो मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी (९), अविरति से होवे सो अप्रत्याख्यानिकी (१०), कौतुक वश देखने से होवे सो दृष्टिकी (११), राग द्वेष से जीवाजीव का स्वरूप पूछने से या राग से घोड़े आदि की पीठ पर हाथ फेरने से होय सो पृष्टि की वा स्पृष्टि की (१२), जीवाजीव की प्रतीत्य - आश्रित्य कर्म बांधने से प्रातीत्यि की (१३), बैल घोड़े आदि को देखने के लिये चारों ओर से आये हुए व प्रशंसा करते लोगों को देखकर प्रसन्न होने से अथवा खुले रखे हुए बरतन में चारों ओर से गिरते हुए त्रस जीवों से बने सो सामंतोपनिपातनिकी (१४), राजा आदि की आज्ञा से सदैव यंत्र शस्त्र चलाने से होय सो नैशत्रिकी (१५), श्वान आदि जीव से या शस्त्रादिक अजीव द्वारा शशक (खरगोश) आदि को मारते होवे सो स्वाहस्तिकी (१६), जीवाजीव को आज्ञा देने से या मंगाने से होय सो आज्ञापनिकी अथवा आनयनिकी (१७), जीवाजीव का छेदन करने से होय सो विदारणिकी (१८), अनुपयोग से वस्तु लेने देने से होय सो अनाभोगिकी (१९), इहलोक परलोक विरुद्ध आचरण से होय सो अनवकांक्षप्रत्यायकी (२०), दुःप्रणिहित मन, वचन, काया, रूप योग से होय सो प्रायोगिकी (२१), जिससे आठ कर्मों का समुपादान होय सो सामुदानिकी (२२), माया और लोभ से होय
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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