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________________ परुषवचनाभियोग वर्जनस्वरूप ६१ कर और भयंकर संसार के भय का नाश करने वाला अनशन ले। इस प्रकार से सम्यक रीति से अनशन लेकर पाप का त्याग कर, जिनदास मरकर जंबुद्वीप का अधिपति अणाढिओ नामक देवता हुआ। इस प्रकार बालक्रीड़ा करने वाले जिनदास की हुई दुर्दशा को देखकर भव से भयातुर हे भव्यों ! उस विषय की निवृत्ति करो। ____ इस प्रकार जिनदास की कथा है। इस भांति शीलवान् जनों का बालक्रीड़ा परिहार रूप पांचवा भेद कहा । अब परुषवचनाभियोग वर्जन रूप छठा शील कहने के लिये आधी गाया कहते हैं फरुसवयणाभियोगो न संमओ शुद्धधम्माणं । मूल का अर्थ-परुष वचन से आज्ञा देना यह शुद्ध धर्म वाले को उचित नहीं। ____टीका का अर्थ-अरे दरिद्र । दासी पुत्र ! इत्यादि कठोर वचन से अभियोग याने आज्ञा करना उचित नहीं - (किसको सो कहते हैं) शुद्ध धर्मी को याने जैन धर्म पालने वाले को, क्योंकि उससे धर्म को हानि तथा लाघव होता है। उसमें धर्म की हानि इस प्रकार कि- . कठोर वचन से उस दिन का तप नष्ट हो जाता है, अधिक्षेप ( आक्रोश ) करने से मास भर का तप नष्ट होता है, शाप देने से वर्ष भर का तप नष्ट होता है और मारने पीटने से श्रमणत्व का नाश हो जाता है। . परुष वाणी बोलने से लोगों में धर्म की लघुता भी होती है, क्योंकि लोग हंसते हैं कि- देखो ! ये धार्मिक पर-पीड़ा-परिहारी
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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