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अशठ गुण पर
में उत्पन्न हुआ, वह मनुष्य की भाषा बोलता हुआ शुकी के साथ क्रीड़ा करता हुआ वहां भ्रमण करता था । उसने किसी समय उक्त हाथी को अनेक हथिनियों के साथ फिरता हुआ देखकर पूर्व भत्र के अभ्यास से महा-कपटो होकर निम्नानुसार विचार किया ।
इस हाथी को ऐसे विषय सुख से किस प्रकार मैं अलग करू ं, इस विषय में सोचता हुआ वह अपने घोंसले में आकर बैठ गया । इतने में वहां चंद्रलेखा नामको विद्याधरी को हरण क लीलारति नामक विद्याधर आ पहुँचा, वह भयभीत होने से उक्त शुक (तोते) को कहने लगा कि हम इस झाड़ो में घुसकर बैठते हैं, यहां एक दूसरा विद्याधर आने वाला है, उसको मेरा पता मत देना, और वह वापस चला जावे तब मुझे कह देना । हे दुग्ध और मधु के समान मृदुभाषी शुक ! जो तू मेरा यह उपकार करेगा तो, मैं तेरा भी योग्य प्रत्युपकार
करूंगा ।
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इतने में वह विद्याधर आ पहुँचा और वहां लोलारति को न देखकर लौट गया, तब शुक ने यह बात छिपे हुए विद्याधर को कही जिससे वह हृदय में प्रसन्न हुआ। इसी बीच में उक्त हाथी स्वेच्छा से घूमता हुआ वहां आ पहुँचा, उसको देखकर शुक विचार करने लगा कि यह उत्तम अवसर है । इससे वह महा-कपटी होकर हाथी के पास जा अपनी स्त्री से कहने लगा कि, वशिष्ठ मुनि ने कहा है कि यह कामित तीर्थ नामक क्षेत्र है। यहां जो भृगुपात करता है वह मनवांछित फल पाता है, यह कह कर स्त्री के साथ वहां से पापात के ढोंग से गिरकर नीचे छुप गया ।