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अशठ गुण पर
___इसीसे कहा है कि- अन्य बहुत से लोगों को चमत्कार उत्पन्न करने वाले मनुष्य तो बहुत मिल जाते हैं, परन्तु जो इस पृथ्वी पर अपने चित्त का रंजन करते हैं, वे तो पाँच छः ही मिलेंगे।
तथाकृत्रिमै डम्बरश्चित्रैः, शक्यस्तोषयितु परः । आत्मा तु वास्तवैरेव हतकः परितुष्यति ॥२॥
और भी कहा है कि - दूसरों को तो अनेक प्रकार के कृत्रिम आडंबरों से प्रसन्न किया जा सकता है, परन्तु यह आत्मा तो वास्तविक रचना ही से परितोष पाती है । उसी कारण से ये याने अशठ पुरुष पूर्व वर्णित स्वरूप वाले, धर्म को उचित याने योग्य माने जाते हैं, सार्थवाह के पुत्र चक्रदेव के सदृश ।
* चक्रदेव का चरित्र इस प्रकार है * विदेह देश में बहुत-सो बस्ती से भरपूर चम्पा नामक नगर था, वहां अतिक र रुद्रदेव नामक सार्थवाह था । उक्त सार्थवाह की सोमा नामक भार्या थी, वह स्वभाव ही से सौम्य थी। उसने बालचन्द्रा नामक गणिनी के पास से गृहिधर्म अंगीकार किया था। उसे कुछ विषय से विमुख हुई देखकर उसका पति क्रोधित हो कहने लगा कि- सर्प के समान भोग में विघ्न करने वाले इस धर्म को छोड़ दे।
उसने उत्तर दिया कि - रोगों के समान भोगों को मुझे आवश्यकता नहीं, तब वह बोला कि-हे मूर्ख स्त्री! तू दृष्टव्य को छोड़कर अदृष्ट को किसलिये कल्पना करती है। वह बोली कि - ये विषय तो पशु भी भोग सकते हैं, यह प्रत्यक्ष है और विविध प्रकार का धर्म करने से तो सब कोई आज्ञा पालें ऐसा ऐश्वर्य प्राप्त होता है, यह तुम प्रत्यक्ष देखते हो। तब उत्तर देने