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अशठ गुण
वर्णन
टीका का अर्थ -- शठ याने कपटी, उससे विपरीत वह अशठ अर्थात निष्कपटी पुरुष, पर याने अन्य को वचता नहीं याने उगता नहीं ।
इसी से बह विश्वसनीय याने प्रतीति योग्य होता है, परन्तु कपटी पुरुष तो कदाचित् न ठगता होवे तो भी उसका कोई विश्वास करता नहीं ।
यदुक्त'मायाशीलः पुरुषो यद्यपि न करोति किंचिदपराधम् । सर्प इवाऽविश्वास्यो, भवति तथाऽप्यात्मदोपहतः ॥ १ ॥
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जैसे कहा है कि -काटी पुरुष यद्यपि कुछ भी अपराध न करे, तथापि अपने उक दोष के जोर से सर्प के समान अविश्वासी रहता है तथा उक्त अशठ पुरुष प्रशंसनीय याने गुण गाने के योग्य भी होता है ।
यदवाचि -
यथा चि तथा वाचो, यथा वाचस्तथा क्रिया । धन्यास्ते त्रितये येषां विसंवादो न विद्यते ॥ १ ॥
कहा है कि - जैसा चित्त होता है वैसी ही वाणी होती है और जैसी वाणी होती है वैसी ही कृति होती है । इस प्रकार तीनों विषय में जिन पुरुषों का अविसंवाद हो, वे धन्य हैं तथा अशठ पुरुष धर्मानुष्ठान में भावसार पूर्वक याने सद्भाव पूर्वक अर्थात अपने चित्त को प्रसन्न करने के लिए उद्यम करता है याने प्रवर्तित होता है, न कि पर रंजन के लिये । स्वचित्त रंजन यह वास्तव में कठिन कार्य है ।
तथा चोक्त - भूयांसो भूरिलोकस्य चमत्कारकरा नराः । रंजयत्ति स्वचित्तं ये, भूतले तेऽथ पञ्चषाः ॥ १ ॥