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विमल की कथा
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दुश्मनों को बंदी करने वाला पुरुषोत्तम नामक राजा है। उसका बलवान दुश्मनों को जीतने वाला अरिमल्ल नामक इकलौता पुत्र है । वह आज क्रीड़ागृह में सो रहा था, इतने में उसको सप ने डस लिया। ___ तब उसकी स्त्रियों के जोर से चिल्लाने से सेवकों ने दौड़कर उक्त दुष्ट सर्प को बहुत देखा, परन्तु उसका पता न लगा। इतने में राजा भी वहां आ पहुँचा और कुमार को मृतवत् देखकर मूर्छित हो गया तथा पवनादिक उपचार से सुधि में आया । पश्चात् राजविष वैद्यों ने अनेक उपचार क्रियाएँ की, किन्तु कुछ भी गुण नहीं हुआ। तब राजा ने निम्नानुसार अपना निश्चय प्रकट किया।
हे प्रधानों ! जो किसी भी प्रकार इस कुमार को कुछ अनिष्ट होगा तो मैं भी प्रज्वलित अग्नि ही की शरण लूगा । इस बात को खबर रानियों को होते ही वे भी करुण स्वर से रुदन कर रही हैं, और सामंत-सरदार भी विषाद युक्त हो रहे हैं, तथा सम्पूर्ण नगरजनों में खलबली मच रही है। अब राजा ने आकुल होकर नगर में ढिंढोरा फिरवाया है कि जो कोई इस कुमार को जीवित करे उसे मैं अपना आधा राज्य दू। ___ यह सुन सहदेव विमल को कहने लगा कि- हे भाई ! यह उपकार करने योग्य है, इसलिये मणि को घिसकर तू कुमार पर छींट कि जिससे यह जल्दी जीवित होवे । विमल ने कहा कि- हे बन्धु ! राज्य के कारण ऐसा भारी अधिकरण कौन करे ? तब सहदेव कहने लगा कि-कुमार को जीवित करके अपने कुल का दारिद्र दूर कर। कारण कि कदाचित् कुमार जीवित होने पर जिन धर्म को भी पालन करेगा।