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अक्रूरता गुण पर
राजा उसे बारंबार क्षमा कर राज्य ग्रहण करने के लिये आग्रह
करता था ।
तब लोगों में चर्चा चली कि, अहो ! भाई-भाई में अन्तर देखो कि एक तो असदृश दुर्जन है व दूसरे में निरुपम सौजन्यता है ।
अब राजा महान वैराग्यवान हो, उदासीनता से दिन व्यतीत करता था । इतने में वहां प्रबोध नामक प्रवर ज्ञानी का आगमन हुआ । उनको नमन करने के लिये आनन्दित हो राजा सपरिवार वहां आया और वहां धर्म सुनकर अवसर पाकर अपने भाई का चरित्र पूछने लगा ।
गुरु बोले कि - महाविदेह क्षेत्रान्तर्गत मंगलमय मंगलावती विजय में सौगंधिकपुर में मदन श्रेष्ठि के सागर और कुरंग 'नामक दो पुत्र थे। उन दोनों भाइयों ने अपनी बाल्योचित क्रीड़ा करते हुए एक समय दो बालक तथा एक मनोहर बालिका देखी । तब उन्होंने उनको पूछा कि तुम कौन हो ? उनमें से एक बोला किः - इस जगत में सुप्रसिद्ध मोह नामक राजा है । उक्त मोह राजा का दुश्मन रूपी हाथी के बच्चे को भगाने में केशरी सिंह समान राग केशरी नामक पुत्र है और उसका मैं सागर समान गम्भीर आशय वाला लोभसागर नामक पुत्र हूँ और यह परिग्रहाभिलाष नामक मेरा ही विनयवान पुत्र है तथा यह बालिका मेरे भाई क्रोधवैश्वानर की क्रूरता नामक पुत्री है।
यह सुनकर वे प्रसन्न हो परस्पर खेलने लगे और सागर नामक श्रेष्ठ पुत्र क्रूरता के अतिरिक्त शेष दो बालकों के साथ मित्रता करने लगा | कुरंग नामक श्रेष्ठी पुत्र उन बालकों के साथ तथा विशेष करके क्रूरता के साथ मित्रता करने लगा । क्रमशः