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विशिष्टप्रथों को हिन्दी में रूपांतरित करके बालजीवों के हितार्थ प्रस्तुत किये जाय । तमुसार श्राद्ध-विधि (हिन्दी) एवं श्री त्रिषष्टीर्यदर्शनी संग्रह ( हिन्दी ) का प्रकाशन हुआ था, और प्रस्तुत ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद मुद्रण योग्य पुस्तिका के रूप में रह गया था। उसे पूज्य गच्छाधिपति श्री की कृपा से संशोधित कर पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है।
इस ग्रन्थ में प्रत्येक गुण उपर अनूठे ढंग से रोचक शैलि एवं उदात्त प्रतिपादना के द्वारा निर्दिष्ट कथाएं विषय को सुदृढ करती है।
विवेकी आत्मा इसे विवेकबुद्धि के साथ पढकर जीवन को रत्नत्रयी की आराधना वास्ते परिकर्मित बनाकर परम मंगलमाला को प्राप्त कराने वाले धर्म की सानुबंध आराधना में सफल हों यह अन्तिम शुभाभिलाषा।
लि० श्री श्रमण संघ सेवक गणिवर श्री धर्मसागर चरणोपासक
मुनि अभयसागर