________________
२३
सोम की कथा
तब अत्यंत करुणातुर होकर उसने तालाव में से पानी लाकर उसे पिला कर (तथा साथ ही उसको) हवा करके सावधान किया.
पश्चात् राजकुमार उसे पूछने लगा कि, हे महाशय ! तू कौन है और तेरी यह दशा किस प्रकार हुई है ? तब वह घायल पुरुष कहने लगा कि, हे सुजन शिरोमणि ! सुन, मैं सिद्ध नामक योगो हूं ।
मैं मुझ से अधिक विद्या बल वाले एक दुश्मन योगी द्वारा इस अवस्था को पहुचाया हुआ हूं - तो भी, हे गुणवान् ! तूने मुझे सावधान किया है ।
पश्चात् प्रसन्न हो राजकुमार को गरूड़ मंत्र देकर अपने स्थान को गया, और वह राजकुमार इस नगर में आया.
रात्रि होने पर उसने कामदेव के मंदिर में विश्राम किया, वहां वह बराबर जागता हुआ लेटा हुआ हो था कि, इतने में वहां एक तरुण स्त्री कामदेव का पूजा करने आई.
तदनंतर वह बाहिर निकलकर कहने लगी कि - हे वनदेवता माताओं ! तुम ठीक तरह सुनो, मैं यहां के वासव नामके राजा की कमला नामक एक सुखी कन्या हूँ.
मेरे पिता ने मुझे मणिरथ राजा के पुत्र विक्रमकुमार को उसके उज्वल गुणों से आकर्षित होकर दी हुई है, तथापि वह कुमार अभी कहां गया है सो मालूम नहीं होता.
अतएव जो इस भव में वह मेरा भतार न हुआ तो आगामी भव में होवे, यह कह कर वह युवती वड़ के वृक्ष में फांसो बांध कर उसमें अपना गला डालने लगो ।
इतने ही में विक्रमकुमार (दौड़ता हुआ वहां जाकर) 'दुःसाहस मत कर ' यह बोलता हुआ फांसो को छुरे द्वारा काट कर कमल समान सुकोमल वचनों से कमला को रोकने लगा.